सोशल मीडिया के दौर में ज्यादातर लोग सिर्फ मोबाइल कैमरे के सामने हंसने लायक बचे हैं। यों तलाश सबको एक अदद हंसी की है, मगर मन के भीतर जो दबी-ढकी-छिपी हंसी है, उसे जाहिर करने में कंजूसी कर जाते हैं।

सोशल मीडिया के दौर में ज्यादातर लोग सिर्फ मोबाइल कैमरे के सामने हंसने लायक बचे हैं। यों तलाश सबको एक अदद हंसी की है, मगर मन के भीतर जो दबी-ढकी-छिपी हंसी है, उसे जाहिर करने में कंजूसी कर जाते हैं।

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सोशल मीडिया के दौर में ज्यादातर लोग सिर्फ मोबाइल कैमरे के सामने हंसने लायक बचे हैं। यों तलाश सबको एक अदद हंसी की है, मगर मन के भीतर जो दबी-ढकी-छिपी हंसी है, उसे जाहिर करने में कंजूसी कर जाते हैं।

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धड़कने लगे दिल के तारों की दुनिया जो तुम मुस्करा दो..., साहिर लुधियानवी की यह पंक्ति बेशक रोमांटिक भाव में लिखी गयी हो, लेकिन सच है कि एक चेहरे की हंसी आसपास की पूरी कायनात को मुस्कराना सिखा सकती है।

दिल हो जब हैप्पी

शोध बताते हैं कि हंसने से हैप्पी हारमोन्स बढ़ते हैं, दिल की बीमारियां दूर रहती हैं, सोच बदलती है और चेहरे का लावण्य बना रहता है। कहा जाता है कि लाफ्टर इज ए बेस्ट मेडिसिन यानी हंसी सर्वोत्तम दवा है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि हंसने से ना सिर्फ फेफड़ों की एक्सरसाइज होती है, बल्कि फेशियल मसल्स भी मजबूत बनती हैं। हंसना एक स्किल है। हंसनेवालों के मन में जीवन के प्रति सकारात्मकता, कृतज्ञता, प्यार व संतुष्टि की भावना बढ़ती है।

हंसी बहुत कुछ कहती है

Minsk Belarus, June 23, 2022. A little girl holds a paper cute winking emoticon lying on the grass of a lawn in the park. World Smiley Day

याद करें, आखिरी बार खुल कर-खिलखिला कर कब हंसे थे आप ! चुटकुला पढ़ कर, मजेदार कहानी पर, दूसरे की बात पर या खुद पर...! क्या वह बेसाख्ता आनेवाली हंसी थी ! हंसी भी कई तरह की होती है। कभी जबरन मुस्कराते हैं, कभी खिसिया कर, कभी व्यंग्य में होंठ गोल करके, तो कभी चिड़चिड़ाहट-खीज या गुस्से में मुस्कराने लगते हैं। कुछ को दूसरों पर हंसना पसंद है, तो कुछ खुद पर हंस लेते हैं। प्रकृति की खूबसूरती, बच्चों संग मस्ती, पक्षियों के कलरव पर मुस्कराने की मोहलत कम होती जा रही है। वैसे हंसने-रोने के बीच जरा सा फर्क है। दोनों में दिल का गुबार बाहर निकलता है और लोग हल्का महसूस करने लगते हैं।

संंक्रामक होती है हंसी

फोर्टिस हॉस्पिटल में मेंटल हेल्थ और बिहेवियरल साइंसेज के कंसल्टेंट डॉ. समीर पारिख कहते हैं, ‘‘हंसी निशुल्क मिलनेवाली प्रभावकारी दवा है। इसके साइड इफेक्ट्स भी नहीं हैं। यह संक्रामक है, एक से दूसरे को फैल सकती है, लेकिन इससे लोग बीमार नहीं, बल्कि स्वस्थ होते हैं। इम्युनिटी अच्छी होती है, ब्लड सर्कुलेशन व फ्लैक्सिबिलिटी बढ़ती है और स्ट्रेस दूर होता है। मगर रोजमर्रा की उबाऊ, थकाऊ, पकाऊ जिंदगी में हंसी का छौंक लगाएं कैसे।’’

खुशी के तीन फंडे

जिंदगी को ज्यादा सीरियसली ना लें, बल्कि सहज, सरल और सीधा बनाएं। डॉ. समीर पारिख कहते हैं कि सिर्फ 3 बातें फॉलो करके देखें-

1. हर चीज में ह्यूमर छिपा है- बहुत सी स्थितियां हैं रुलाने को, लेकिन हर स्थिति, घटना या बात का दूसरा पक्ष भी है। घर, दफ्तर या फिर कहीं भी हों, उस मजेदार पहलू को ढूंढ़ने की कोशिश करें। एक बार अभ्यास शुरू करेंगे, तो पाएंगे कि इस तलाश ने आपके भीतर की कितनी कुंठाओं, स्ट्रेस और बेचैनियों को कम कर दिया है।

2. जो भी है, बस यही एक पल है- ज्यादातर लोग या तो बीते कल में जीते हैं या आनेवाले कल को ले कर चिंतित रहते हैं। तमाम परेशानियों के बावजूद दिन का कोई हिस्सा ऐसा जरूर होता है, जो हंसने को प्रेरित करता है। बच्चे या पालतू पशु के साथ वक्त बिताना, प्रकृति को निहारना, कुछ अच्छा पढ़ना, सुनना या देखना... ऐसे ही कुछ पल हैं। ‘अपना टाइम आएगा’, यह ना सोचें, बल्कि रोज हंसने के बहाने खोजें।

3. सेल्फ केअर- दिन के 24 घंटे में अपने काम, फैमिली, समाज, रिश्तों या दूसरों के लिए जीता है हर व्यक्ति। मी टाइम को भुला देता है। जबकि खुद को दोबारा ऊर्जा प्रदान करने, क्रिएटिव और पॉजिटिव बनाने के लिए मी टाइम जरूरी है। गाने का मन है, तो गुनगुनाएं, हंसने का मन है, तो हंसें, डांस नहीं आता, तो भी जी करे तो नाचें...यानी मी टाइम में वह सब करें, जिसे आपने अब तक रोक रखा है। कीमती पल रिजर्व नहीं किए जाते कि फुरसत होगी तो स्पा जाएंगे, हॉलीडे मनाएंगे। खुश होना सबका अधिकार है और इससे किसी अन्य के अधिकार का हनन नहीं होता।

...तो हंसते-हंसाते रहें। मुस्कान ही है, जो संवेदनशीलता, उदारता, विनम्रता सिखाती है। योग और ध्यान के गुण हैं इसमें, भीतर-बाहर से टॉक्सिन-फ्री कर देती है।