बारिश के मौसम में जोड़ों-मांसपेशियों का दर्द और कई तरह के संक्रमण भी उभर आते हैं। इससे शरीर दर्द और थकान से कमजोर हो जाता है, पर मालिश से शरीर को मजबूती मिलती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। मानसून के दिनों में सबसे बेहतर अभ्यंग यानी तेल मालिश है। इससे एकाग्रता, आत्मविश्वास व नींद में बहुत सुधार आता है। शरीर की बेहतरीन टोनिंग होती है।

बारिश के मौसम में जोड़ों-मांसपेशियों का दर्द और कई तरह के संक्रमण भी उभर आते हैं। इससे शरीर दर्द और थकान से कमजोर हो जाता है, पर मालिश से शरीर को मजबूती मिलती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। मानसून के दिनों में सबसे बेहतर अभ्यंग यानी तेल मालिश है। इससे एकाग्रता, आत्मविश्वास व नींद में बहुत सुधार आता है। शरीर की बेहतरीन टोनिंग होती है।

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बारिश के मौसम में जोड़ों-मांसपेशियों का दर्द और कई तरह के संक्रमण भी उभर आते हैं। इससे शरीर दर्द और थकान से कमजोर हो जाता है, पर मालिश से शरीर को मजबूती मिलती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। मानसून के दिनों में सबसे बेहतर अभ्यंग यानी तेल मालिश है। इससे एकाग्रता, आत्मविश्वास व नींद में बहुत सुधार आता है। शरीर की बेहतरीन टोनिंग होती है।

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बारिश के मौसम में जोड़ों-मांसपेशियों का दर्द अौर कई तरह के संक्रमण भी उभर अाते हैं। इससे शरीर दर्द अौर थकान से कमजोर हो जाता है, पर मालिश से शरीर को मजबूती मिलती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। मानसून के दिनों में सबसे बेहतर अभ्यंग यानी तेल मालिश है। इससे एकाग्रता, अात्मविश्वास व नींद में बहुत सुधार अाता है। शरीर की बेहतरीन टोनिंग होती है। बापू नेचर क्योर हॉस्पिटल व योगाश्रम में मेडिकल अॉफिसर डॉ. मालविका पांडेय के अनुसार, हमारे शरीर में 3 शारीरिक दोष हैं - पित्त, वात अौर कफ दोष। बरसात में वात दोष स्वाभाविक रूप से बढ़ जाता है। अायुर्वेद में अॉइल मसाज को वात शमन के लिए सबसे लाभकारी ट्रीटमेंट माना गया है। सामान्य रूप से तिल तेल को चरक संहिता में मालिश के लिए सबसे अच्छा माना गया है। वात दोष इस मौसम में लोगों को सबसे ज्यादा परेशान रखता है। परिणामस्वरूप जोड़ों व शरीर में दर्द, अार्थराइटिस, नर्व्स की कमजोरी अाम समस्याएं होती हैं। इन दिनों सबसे ज्यादा हड्डियों का दर्द व नसों की कमजोरी परेशान रखती है। इस मौसम में साधारण अॉइल मसाज या पोटली मसाज बहुत लाभकारी रहती है। पोटली मसाज में अॉइलवाली पोटली इस्तेमाल की जाती है। इन दिनों सबसे बेहतर तेलधारा मसाज रहती है, खासकर सर्वांग तेलधारा। इसमें पूरी तरह से अॉइलिंग अौर मसाज की जाती है।

सर्वांग तेलधारा


अायुर्वेद में सर्वांग तेलधारा एक ऐसा ट्रीटमेंट है, जिसमें स्नेहन अौर स्वेदम दोनों होता है यानी पूरे शरीर की सिर से पैर तक तेल से मालिश किया जाना। डॉ. मालविका बताती हैं कि स्वेदम का मतलब स्वेटिंग (पसीना) कराना है। इसमें हम गरम तेल को एक निश्चित ऊंचाई से शरीर पर डालते हैं। इससे शरीर के ऊपरी हिस्से में मौजूद नसों का पोषण होता है। इस समय सिस्ट, जॉइंट्स के कंजेशन, ड्राईनेस या फ्लूइड खत्म होने से जोड़ों में वात अा जाता है, जिसे संधि वात कहते है। इन सभी शारीरिक स्थितियों में सर्वांग तेलधारा मालिश बहुत फायदेमंद रहती है। सर्वांग मालिश से पूरे शरीर में खून का दौरा बढ़ जाता है अौर पाचन शक्ति अच्छी होती है। पेट साफ रहता है। अांतें, दिल, फेफड़े अौर लिवर मजबूत होते हैं। अपच, वायु-पित्त विकार, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप में यह मसाज लाभकारी है। इससे त्वचा के सभी बंद रोम छिद्र खुलने लगते हैं।

शिरोधारा


शिरोधारा कई रूपों में दी जाती है। कुछ हर्बल तेल, अौषधीय मक्खन, अौषधीय दूध, अौषधीय जल से भिन्न-भिन्न तरह की शिरोधारा की सामग्री तैयार की जाती है। इन दिनों शिरोधारा कराने से बहुत लाभ पहुंचता है। शिरोधारा यानी सिर पर धारा पड़ना। दरअसल यह मसाज सेंट्रल नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र को मजबूत करती है। शिरोधारा कई तरह से दी जाती है, मसलन तेलधारा, क्षीरधारा में दूध का इस्तेमाल होता है। जलधारा भी दी जाती है। ये सब शिरोधारा के रूप हैं। इसमें माथे से दस अंगुल ऊपर एक पात्र लटकाया जाता है, जिसमें तेल, दूध, दही या पानी जैसी जो कोई भी शिराेधारा ली जा रही है, वैसा द्रव भरा जाता है। पात्र के छेद से तेल या अन्य द्रवों की बूंदें माथे पर लगातार गिरती जाती हैं। इससे जितने भी सेंट्रल सिस्टम के डिस्अॉर्डर हैं, वे ठीक होते हैं। ब्रेन ही शरीर के सारे सिस्टम चला रहा है, चाहेे वह पाचन संबंधी हो, चलना-फिरना हो या बातचीत करना हो। अगर ब्रेन में बराबर सर्कुलेशन है, तो ब्रेन हेल्दी होता है। जब शिरोधारा में तेल ऊपर से गिरता है, तो नर्व्स में बराबर ब्लड सर्कुलेशन होता है। ब्रेन को अॉक्सीजन मिलती है, इससे शरीर की स्थिति सुधरती है अौर टॉक्सिन निकलते हैं। शिरोधारा से अनिद्रा, तनाव, थकान दूर होती है, जीवन शक्ति बढ़ती है।
बारिश के मौसम में शरीर की साधारण सी मसाज भी कारगर है। स्वस्थ व्यक्ति खुद तेल को पूरे शरीर में लगा कर मालिश कर सकता है। इससे एक्सरसाइज भी हो जाएगी अौर मालिश भी। अार्थराइटिस, अॉस्टियो अार्थराइटिस अौर सोराइसिस के मरीज अपने डॉक्टर से मेडिकेटेड अॉइल प्रेस्क्राइब कराके उससे मालिश कर सकते हैं। वह ज्यादा इफेक्टिव रहेगा।
घर में रहनेवाली महिलाएं बरसात में रोज, दो दिन छोड़ कर या हफ्ते में एक बार सरसों, नारियल या तिल के तेल से खुद अपनी मालिश करें। घर में मालिशवाली से भी इन तेलों से मालिश करा सकती हैं। इन तेलों को मिलाएं नहीं।

स्वीडिश मसाज


 डॉ. रुक्मिणी के अनुसार स्वीडिश मसाज इन दिनों बहुत लाभदायक रहती है। इसे सिंपल मसाज थेरैपी भी कहते हैं। यह लोशन या तेल से की जाती है। यह बहुत ही कोमलतापूर्वक दी जानेवाली मसाज है, जो काफी अारामदायक होती है। यह सबसे साइंटिफिक मसाज है। इसमें कई मूवमेंट हैं। मरीज को उसकी कंडीशन के हिसाब से मसाज दी जाती है।
सामान्य रूप से पैर से सिर की अोर मालिश की जाती है, मगर जिसे दिल की समस्या है या हाई ब्लड प्रेशर है, तो उसे सिर से पैर तक मसाज देते हैं। इसमें बहुत हल्के हाथ से बिना किसी प्रेशर के बस सहलाने जैसी मालिश होती है। जिकजैक करते हुए हल्का प्रेशर देते हुए व दिल से दूर रहते हुए मसाज देते हैं। जिस तरह अाटा मलते हैं, उसी तरह शरीर की मालिश करते हैं। इससे हड्डियों को मजबूती मिलती है। यह मसाज 45 मिनट तक ठीक है, मगर ढंग से मसाज में एक घंटा लगता है। सर्कुलेशन अच्छा होता है।
डॉ. रुक्मिणी कहती हैं कि मसाज तिल के तेल से करना इसलिए अच्छा है, क्योंकि इसमें अरोमा फ्लेवर है। यह बहुत अंदर तक जा कर शरीर को मजबूत करता है, यह एंटी कैंसरस है, थायरॉइड कम करती है। तिल अॉइल से अरोमा थेरैपी भी दी जाती है। तिल के तेल के अलावा सरसों का तेल, नारियल का तेल एंटी एलर्जन होता है। इन तेलों में गाढ़ापन नहीं है। मिलेजुले तेल से मालिश नहीं करें। फिटनेस के लिए हफ्ते में एक से दो बार मालिश करें या करवाएं। स्वीडिश मसाज में अॉइल ज्यादा होता है, इसलिए स्टीम बाथ लेते हैं। खाली पेट मसाज कराएं, या खाने के 3-4 घंटे बाद ही मालिश करानी चाहिए।                  

मालिश के समय ध्यान रखें


⇛ मालिश कराते समय एसी ना चलाएं, पंखा धीमा चलाएं।
⇛ बहुत प्रेशर डाल कर मसाज ना कराएं, जितना सह सकती हैं, उतने ही प्रेशरवाली मसाज लें।
⇛ मसाज के बाद बॉडी का टेंपरेचर एकदम बढ़ जाता है, इसलिए गुनगुने पानी से नहाएं। मालिश के 10-15 मिनट बाद नहा सकते हैं। नेचुरोपैथ में मालिश के 2-3 मिनट बाद गुनगुने पानी से नहा सकते हैं, पर पहले महसूस करें कि अापका शरीर इसके लिए तैयार है या नहीं। नाश्ता करने के 3-4 घंटे बाद मालिश की जा सकती है।
⇛ जो व्यक्ति मालिश के बाद ना नहाना चाहे, वह खुद को हवा से बचाए अौर अपने अापको पूरी तरह कवर करके रखे, क्योंकि मालिश के बाद ठंडे में जाने से पसलियों या मांसपेशियों में दर्द की शिकायत हो सकती है। मालिश से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ने से हीट बढ़ जाती है। ऐसे में हवादार जगह पर जाने से मालिश पा कर खून की जो कणिकाएं फैल जाती हैं, वे एकदम से सिकुड़ जाती हैं। मालिश के 15 मिनट बाद ही कपड़े हटाएं।
⇛ अगर स्किन में समस्या नहीं है, तो रोज मसाज ली जा सकती है।
⇛ मालिश तिल, सरसों, नारियल अौर अरोमा अॉइल्स से भी कर सकते हैं।