मीनाक्षी शेषाद्रि ने 1983 में अपनी डेब्यू फिल्म पेंटरबाबू से लोकप्रियता हासिल की, लेकिन उसी वर्ष आयी हीरो ने उन्हें और जैकी श्राफ को स्टारडम दिया। इन फिल्मों के 40 वर्ष पूरे होने पर उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश-

मीनाक्षी शेषाद्रि ने 1983 में अपनी डेब्यू फिल्म पेंटरबाबू से लोकप्रियता हासिल की, लेकिन उसी वर्ष आयी हीरो ने उन्हें और जैकी श्राफ को स्टारडम दिया। इन फिल्मों के 40 वर्ष पूरे होने पर उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश-

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मीनाक्षी शेषाद्रि ने 1983 में अपनी डेब्यू फिल्म पेंटरबाबू से लोकप्रियता हासिल की, लेकिन उसी वर्ष आयी हीरो ने उन्हें और जैकी श्राफ को स्टारडम दिया। इन फिल्मों के 40 वर्ष पूरे होने पर उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश-

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कमाल का स्टारडम रहा मीनाक्षी शेषाद्रि का। अमिताभ बच्चन से ले कर धर्मेंद्र, जितेंद्र, ऋषि कपूर, गोविंदा, विनोद खन्ना, राजेश खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे तमाम सुपरस्टार्स के साथ काम करने वाली क्लासिकल डांसर और एक्टर मीनाक्षी शेषाद्रि ने 1995 में इन्वेस्टमेंट बैंकर हरीश मैसूरे से अरेंज्ड मैरिज की, यूएस में सेटल हो गईं और फिल्मों को अलविदा कह दिया। अब एक बार फिर 27 वर्ष बाद उनका कमबैक हुआ है। फिल्मों से जुड़ी यादों, डांस के प्रति प्यार और जीवन के कई पहलुओं को ले कर उनसे हुई एक बातचीत।

प्रश्नः मीनाक्षी, आपकी दो फिल्मों ने 40 साल पूरे किए हैं। दोबारा भारत लौट कर कैसा लग रहा है आपको।

उत्तरः हीरो ने मुझे स्टारडम दिलाया, लेकिन पेंटरबाबू ने एक न्यूकमर को लाइमलाइट दिलाया। जहां तक मुझे याद है, राजकुमार संतोषी जी की फिल्म दामिनी 1993 में रिलीज हुई और उसके बाद आई 1996 में घातक। ये दोनों मेरी आखिरी फिल्में थीं, जिनके बाद मैं शादी करके यूएस चली गई। अब मेरी बेटी केंद्रा 25 वर्ष पूरे कर चुकी है और कैरिअर में सेटल है, बेटा जोश 21 साल का है और अभी पढ़ाई पूरी की है उसने। अब मैं घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों से थोड़ा मुक्त हुई हूं। हालांकि मैंने हमेशा यही सोचा था कि कभी न कभी देश लौटकर एक्टिंग में वापसी करूंगी, क्योंकि एक्टिंग मेरा पैशन है।

प्रश्नः अब लौटी हैं तो किस तरह की भूमिकाएं करना पसंद करेंगी।

उत्तरः फिलहाल एक प्रोजेक्ट साइन किया है, अभी इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कह सकती। इंडस्ट्री बदली है, कहानियां, किरदार बदले हैं। मुझे हमेशा ऐसे किरदार पसंद रहे हैं, जो मेरी अपनी पर्सनैलिटी को उभारें। अब कमबैक भी कुछ जानदार तो होना ही चाहिए। मैं कोरी स्लेट हूं, देखती हूं कि किस तरह के रोल मिलते हैं। अच्छी बात है कि अब अभिनेत्रियां सिर्फ शोपीस नहीं रहीं। फिर चाहे टीवी, फिल्म हो या ओटीटी प्लेटफॉर्म हो। इस अर्थ में मैं आशान्वित तो हूं ही।

प्रश्नः आपने दो देशों में जीवन बिताया। दोनों के मूल्यों में क्या फर्क पाया। बॉलीवुड के ग्लैमर और शोहरत को क्या कभी यूएस में मिस किया?

उत्तरः यूएस में सबसे बड़ी कमी जो मैंने महसूस की, वह है अपनेपन की। लेकिन वहां जाकर फायदा यह हुआ कि मैं इंडिपेंडेंट बनी। वहां मैंने बहुत से ऐसे काम सीखे, जो शायद यहां भारत में नहीं सीख पाती। मसलन, घर के काम, खाना बनाना, ड्राइविंग, स्विमिंग, फाइनेंसेज खुद मैनेज करना...। यहां होती तो सेट पर मेकअप आर्टिस्ट, हेयर स्टाइलिस्ट, डायरेक्टर होते, घर पर माता-पिता, जो पैंपर करते रहते। लेकिन अपने देश की सभ्यता-संस्कृति तो अलग ही होती है। हम यहां मदद मांगते नहीं, उसकी अपेक्षा रखते हैं, जबकि वहां यूएस में ऐसा नहीं है, अपनी मदद सबको खुद करनी है। वहां किसी दोस्त के घर भी जाना होता है तो पहले अपॉइंटमेंट लेने का रिवाज है, सोचना पड़ता है कि कहीं उनकी प्राइवेसी में दखलअंदाजी तो नहीं कर रहे हैं। अपने देश में 'अतिथि देवो भवः' है। मैं अपनी सहेली के घर बेहिचक जा सकती हूं और हक से कह सकती हूं कि यार एक कप चाय पिलाओ। ये बहुत छोटी-छोटी बातें हैं। मैंने यूएस में भारतीय जीवनशैली, खुशमिजाज और मददगार लोगों को मिस किया।

प्रश्नः घर-गृहस्थी के अलावा आपने वहां डांस क्लासेज भी लीं?

उत्तरः डांस क्लास के बजाय डांस ट्यूशन कहूंगी। डांस सिखाने से पहले मैं वहां बच्चों का ऑडिशन लेती हूं कि बच्चे में सीखने का एप्टिट्यूड है या नहीं। मैंने वहां के लोकल डांस इंस्टिट्यूट, कोरियोग्राफर के साथ कोलेब्रेशन किया। मैं स्टेज पर कथक करती हूं, मेरा राइवल अफ्रीकन डांस करता है, मैं भरतनाट्यम करूंगी तो वह अमेरिकन हिपहॉप करेगा। इस तरह से वहां परफॉर्मेंसेज होती हैं और मुझे यह अच्छी भी लगती हैं।

प्रश्नः ओटीटी इस वक्त फिल्मों के लिए टफ कॉम्पीटिशन बन चुका है। आप इस माध्यम के लिए कितनी तैयार हैं, जहां ग्रे शेड्स, नेगेटिव किरदार और अजीबोगरीब कहानियां हैं।

उत्तरः मैं यहां सबको सरप्राइज करने आई हूं। मैं नेगेटिव किरदार करूंगी या नहीं, यह तो किरदार ऑफर होने पर निर्भर करता है। मैं पॉजिटिव, नेगेटिव, ग्रे जैसे हर शेड्स कर सकती हूं, लेकिन पहले प्रस्ताव तो आएं।

प्रश्नः आपने कई दिग्गजों के साथ काम किया। उनके साथ काम के आपके क्या अनुभव रहे?

उत्तरः हर मेमोरी शेयर करूंगी तो एक इंटरव्यू से बात नहीं बनेगी। हां, मेरी अगर किसी से खूब छनी तो वह थे विनोद खन्ना। जब वह शिखर पर थे, तभी सब छोड़कर आचार्य रजनीश की शरण में चले गए। हालांकि जल्दी ही वापस भी आए और इंडट्री ने उनका स्वागत किया। इसके बाद मैंने उनके साथ 5-6 फिल्में कीं। वे काफी आध्यात्मिक हो चुके थे, उनसे बात करना अच्छा लगता था, क्योंकि उनके पास बहुत से अनुभव थे, ज्ञान का खजाना था। मेरे पापा भी उनकी बातें सुनते थे। दूसरे हैं गोविंदा, जो इंडस्ट्री का वर्सटाइल सितारा हैं। बहुत प्यारा रिश्ता रहा हमारा। बस गोविंदा एक साथ दर्जनों फिल्में कर रहे होते थे तो कभी टाइम पर शूटिंग पर नहीं पहुंच पाते थे और सेट पर उनका इंतजार करना मुश्किल होता था। चिंटू जी यानी ऋषि कपूर के साथ भी मैंने 5 फिल्में कीं, वे दिलचस्प इंसान थे। अब जब रणबीर को देखती हूं तो चिंटू जी की झलक देखती हूं उसमें।

प्रश्नः आप एक उम्दा डांसर हैं, लेकिन आपको तब डांस के बहुत मौके नहीं मिले।

उत्तरः वैसे मेरे दौर में आइटम नंबर्स काफी चर्चा में आ गए थे। आइटम सॉन्ग से लीड एक्ट्रेस की लोकप्रियता बढ़ जाती है, यह तो सचाई है। डांस, हिट नंबर्स और कॉस्ट्यूम को मिला कर एक पूरा पैकेज बनता है। मुझे कोई आइटम नंबर नहीं मिला। मैंने हमेशा गरिमा के साथ अपनी शर्तों पर फिल्में कीं। मेरे लिए यह ज्यादा जरूरी था कि मेरे गानों के बोल ढंग के हों, पोशाक भद्दी ना हो, डांस शालीन हो। इन शर्तों के साथ डांस करने में मुझे कोई बुराई भी नहीं प्रतीत होती थी।

प्रश्नः फिल्म हीरो से जुड़ी मेमोरीज शेयर करना चाहेंगी।

उत्तरः यादें तो बेशुमार हैं, लेकिन अभी जेहन में याद आ रही एक बात। निंदिया से आयी बहार... गीत का फिल्मांकन ऊटी में झरने के नीचे चल रहा था। उस दिन मुझे तेज बुखार था और ठंड में झरने के नीचे नाचना था। सुभाष घई जी को मैंने यह बात नहीं बताई क्योंकि ऐसा कहने पर सबकी डेट्स बेकार हो जातीं और शूटिंग पूरी नहीं हो पाती। जब फिल्म रिलीज हुई तो इस गीत का फिल्मांकन, गीत, डांस... सभी की खूब तारीफ हुई। तब मैंने घई साहब के सामने इस बात का खुलासा किया! तू मेरा जानू है... गीत की शूटिंग मनोरी आयलैंड में हो रही थी। मैं नाचते-नाचते पीछे चलती चली गई, वहां कैक्टस थे, जिसका महीन कांटा मेरी उंगली में ऐसा धंसा कि मुझे रोना आ गया ! कैमरा रोल हो रहा था, तभी मेरी परेशानी सिनेमेटोग्राफर क्रिस्टोफर डॉयल ने देख ली। उन्होंने शूट होते ही पानी गर्म किया और फिर हीट देकर मेरी हथेलियों में धंसा कांटा निकाला। मैं हमेशा उनकी शुक्रगुजार रहूंगी!

प्रश्नः 27 साल बाद सबसे बड़ा फर्क आपने बॉलीवुड में क्या पाया?

उत्तरः वैनिटी वैन...। मेरे टाइम में यह नहीं थी। धूप, बरसात, धूल-मिट्टी में हम शूटिंग करते तो ड्रेस बदलने की प्रॉपर सुविधा भी नहीं थी। फिल्म सिटी, फिल्मिस्तान, कमालिस्तान, सेठ, नटराज हर स्टूडियो के मेकअप रूम गंदे होते थे। अफसोस मेरे दौर में कुछ नहीं बदला, ऊपर वाले ने हमारी बात अब जा कर सुनी। खैर, इस दौर की अभिनेत्रियों के लिए तो यह बड़ी बात है कि उनके पास अपनी वैनिटी वैन हैं। पारिश्रमिक भी बढ़ा है। फिल्म इंडस्ट्री का ढांचा ही बदल गया है।