मेरी मां ने अपने परिवार के लिए खुद के कैरिअर और चाहतों को बैक सीट पर रखा, लेकिन अपने इस निर्णय पर वे दुखी नहीं लगीं। परिवार के प्रति समर्पण उनकी निष्ठा और त्याग का सूचक था।

मेरी मां ने अपने परिवार के लिए खुद के कैरिअर और चाहतों को बैक सीट पर रखा, लेकिन अपने इस निर्णय पर वे दुखी नहीं लगीं। परिवार के प्रति समर्पण उनकी निष्ठा और त्याग का सूचक था।

Want to gain access to all premium stories?

Activate your premium subscription today

  • Premium Stories
  • Ad Lite Experience
  • UnlimitedAccess
  • E-PaperAccess

मेरी मां ने अपने परिवार के लिए खुद के कैरिअर और चाहतों को बैक सीट पर रखा, लेकिन अपने इस निर्णय पर वे दुखी नहीं लगीं। परिवार के प्रति समर्पण उनकी निष्ठा और त्याग का सूचक था।

Want to gain access to all premium stories?

Activate your premium subscription today

  • Premium Stories
  • Ad Lite Experience
  • UnlimitedAccess
  • E-PaperAccess

दुनिया में सभी का अपनी मां से रिश्ता सबसे ज्यादा गहरा, खूबसूरत और उतना ही सशक्त होता है। इस बिकाऊ दुनिया में पति-पत्नी,बहनें, भाइयों के रिश्ते में खटास आ सकती है, बस मां और बच्चों के रिश्ते में ही कभी अमूमन दूरियां नहीं आती... मेरी मां स्नेहलता दीक्षित और मेरा रिश्ता कुछ ऐसा ही प्यारा-पाक है। 

मेरी मां स्नेहलता दीक्षित शादी होने से पहले रत्नागिरी (कोंकण) के छोटे से खेड़ेगांव में रहा करती थीं। उनका संयुक्त परिवार था और परिवार की मानसिकता उस दौर के अनुसार दकियानूसी थी ! मेरी मां क्लासिकल डांस सीखने में रुचि रखती थीं, पर उनके मायके में जब डांस वाली बात पता चली, तो जैसे कहर टूटा। अच्छे परिवारों की ब्राह्मण बेटियां डांस नहीं सीखा करतीं ! मां का सपना जैसे टूट गया। आई (मां) डांस नहीं सीख पायीं। उन्होंने आगे चल कर किसी तरह अपनी मां को मनाया और फिर मां ने अन्य पारिवारिक सदस्यों को... फिर मां को क्लासिकल म्यूजिक सीखने की इजाजत मिल गयी। मां को जब भी वक्त मिला, उन्होंने तानपूरा सीखा, क्लासिकल संगीत सीखा। आगे चल कर मां की शादी मेरे पिता जी यानी शंकर दीक्षित से हुई और वे मुंबई आयीं। पारिवारिक जिम्मेदारियां, हम 4 बच्चे (3 बेटियां -1 बेटा), दादी, पिता जी इन सभी के लिए वे दिनभर काम करती रहीं, फिर चाहे खाना बनाना हो या हम बच्चों का होमवर्क कराना हो। मेरी मां ने उनकी पूरी जिंदगी सिर्फ अपने परिवार, बच्चों के लिए होम कर दी। इसीलिए मां को त्याग का दूसरा नाम दिया जाता है।

कैरिअर से ऊपर परिवार

पिता जी को अहसास हुआ कि मां में म्यूजिक के प्रति पूरी निष्ठा है। दिनभर सभी के लिए काम करने के बाद भी वे म्यूजिक के लिए वक्त निकाला करती थीं। अगर मां चाहतीं, तो सिंगर बनने के सपने देख सकती थीं। खुद के लिए अलबम निकालना भी बहुत बड़ी समस्या नहीं थी। कम से कम वे बतौर म्यूजिक टीचर भी अपना पसंदीदा कैरिअर शुरू कर सकती थीं, पर मां ने जैसे अपने जीवन की लक्ष्मण रेखा हम बच्चों के लिए, अपने परिवार के लिए सीमित कर ली थी। उनकी यह भावना थी कि अगर वे अपना ध्यान म्यूजिक में देंगी, तो परिवार के लिए वक्त कम मिलेगा। इस गिल्ट की भावना ने उन्हें खुद के लिए कैरिअर की राह बनाने से रोका ! 

मेरी मां जब अपने हारमोनियम-तानपूरे को ले कर गाने का रियाज करतीं, तो दूर बैठे पिता जी भी मां को दाद दिया करते थे ! मैं अपने पिता जी से मजाक में पूछ लिया करती थी, आपको कैसे सुनायी दे रहा है मां का गीत? (मां और पिता जी की शादी के 8 वर्षों बाद ही पिता जी को धीरे-धीरे कम सुनायी देने लगा था)। फिर पिता जी कहते थे, ‘‘मुझे मां का गाना तो नहीं सुनायी दे रहा है, पर वाइब्रेशंस जरूर सुनायी दे रहे हैं, इसीलिए मैं मां को दाद देता हूं, ताकि तेरी मां इस प्रोत्साहन से अपनी कला के प्रति कुछ करे, हमेशा के लिए गाती रहे।’’ बहुत खुला माहौल रहा मेरे घर का। मुझे डांस, म्यूजिक, ड्रॉइंग ये सभी कलाएं मां से विरासत में मिली हैं।

मां के इन्हीं आदर्श भावों के साये में, संस्कारों में पली-बढ़ी हूं मैं। कैरिअर और परिवार के तराजू पर मां ने हमेशा परिवार को अहमियत दी। 

मैंने शादी से पहले अपने कैरिअर को काफी एंजॉय किया। जो रोल मिले, उन्हें शिद्दत से निभाया। जब मेरे परिवार ने मेरी शादी करनी चाही, मैंने शादी की और अपने वैवाहिक जीवन को भी प्यार से, दिल से, शिद्दत और समर्पण से निभाया। मेरे जीवन का हर निर्णय बाय चॉइस था, इसीलिए कभी किसी बात का मलाल नहीं रहा। मेरी मां ने अपने परिवार के लिए खुद के कैरिअर और चाहतों को बैक सीट पर रखा, लेकिन कभी अपने इस निर्णय पर वे दुखी नहीं लगीं। मां का परिवार के प्रति समर्पित रहना उसकी निष्ठा और त्याग का उदाहरण था और अपने निर्णयों पर असंतुष्ट होना उसकी फितरत नहीं थी ! ईश्वर जिंदगी सभी को देता है, पर उस जीवन को कैसे जीना है, यह कला सभी को मालूम नहीं होती। जीवन को सुख-समाधान-संतुष्टि के साथ कैसे जिया जाता है, मैंने मेरी आई से सीखा।

मुझे मां की बतायी यह बात आज भी याद है, मेरे पिता जी से मां की शादी हुई तो मां ने कहा था, जब भी भविष्य में मुझे बेटी होगी, मैं उसे क्लासिकल डांस सिखाऊंगी। हम 3 बहनें हैं। भारती, रूपा और मैं। भारती और मुझ में 10 वर्षों का फर्क है। भारती और रूपा को कथक सिखाने के लिए घर पर गुरु जी आने लगे। उनकी तालीम शुरू हुई। मैं परदे के पीछे खड़ी रह कर भारती और रूपा का कथक देखा करती थी। मेरी उम्र संभवतः 3 से 4 साल होगी। उन्हें डांस करते हुए देख कहीं ना कहीं मेरे पांव भी थिरकने लगते थे। गुरु जी ने मां से कहा, ‘‘आप बबली (माधुरी) की तालीम अभी से शुरू करा दो, वह बॉर्न डांसर मालूम होती है !’’  गुरु जी के कहने की देरी थी कि मां ने मुझे कथक सिखाना शुरू कर दिया। आज अगर मैं अच्छी डांसर कहलाती हूं, तो उसके पीछे मां का त्याग, मेहनत और ख्वाब है। हमेशा अपने बच्चों को प्रोत्साहन देने की सकारात्मक ऊर्जा है। 

मां ने स्टारडम का नशा नहीं चढ़ने दिया

फिल्म अबोध ने मुझे बॉलीवुड कलाकार तो बनाया, पर फिल्म तेजाब से मैंने स्टारडम देखा। लेकिन मुझे मां के कारण कभी भी स्टारडमवाली ट्रीटमेंट घर पर नहीं मिली। मां ने कहा, ‘‘तुम्हें ऑस्कर भी क्यों ना मिले, लेकिन घर पर तुम बेटी हो, घर के संस्कार कभी भूलना नहीं, बड़ों का आशीर्वाद ही तुम्हें आगे ले जाएगा। इंसान किसी एक गुण के बलबूते पर आगे नहीं बढ़ता, उसके इदगिर्द संस्कारों की आभा उसे बड़ा बनाती है, और मुझे मेरे परिवार की आभा कुछ ज्यादा ही प्राप्त हुई है। अबोध फिल्म के बाद तेजाब और रामलखन फिल्मों की सफलता से पहले मैंने हिफाजत, उत्तर दक्षिण, स्वाति जैसी फिल्में कीं, जो बॉक्स ऑफिस पर खास नहीं चली। स्वाति फिल्म के समय की बात है, इसकी शूटिंग के लिए मैं स्टूडियो पहुंची, तो गेटकीपर ने मुझे गेट के अंदर जाने से रोका और वह बहस करता रहा। मेरी तब तक कोई पहचान नहीं बनी थी। गेटकीपर का कहना था, ‘‘स्वाति फिल्म की हीरोइन तो मीनाक्षी शेषाद्रि हैं, जो स्टूडियो में आ कर शॉट दे रही हैं, फिर आप कौन माधुरी नाम बता कर भीतर जाने की कोशिश कर रही हैं !’’ गेटकीपर के यह कहते ही मेरी आंखें नम हुईं और मैंने गेट से वापस घर जाने का फैसला लिया। मन ही मन इतनी मायूस हुई कि सोचा मेरा कोई वजूद यहां बनने से रहा। जब मीनाक्षी शेषाद्रि फिल्म की लीड एक्ट्रेस होंगी, तो दर्शक मुझे कैसे नोटिस करेंगे ! बस, निराशाभरे उन पलों में मेरी मां ने मुझमें ऐसी सकारात्मकता भर दी कि मैं आज तक अभिनय की दुनिया में हूं और मुझे इंडस्ट्री में काम करते 35 वर्ष हो चुके हैं, इसका भी श्रेय आई को जाता है। 

मां का प्रभाव हम सभी बहनों पर कायम रहा। मैंने अपने बच्चों की परवरिश ठीक वैसे ही की, जैसे मेरे परिवार, मां और पिता जी ने मेरी की थी। मेरे दोनों बच्चे रायन और आरिन जब छोटे थे, मैंने कैरिअर को हमेशा बैक सीट पर रखा, क्योंकि मेरे बढ़ते बच्चों को मेरी जरूरत थी। लेकिन जब मैंने यह निर्णय लिया, तो मुझमें कोई गिल्ट नहीं था कि आगे चल कर मैं अभिनय की दुनिया में वापस आना चाहूंगी, तो क्या मुझे काम मिलेगा? जैसा मैंने कहा, जीवन के सभी फैसले जब आप अपनी मर्जी से लें, तो उन फैसलों पर कोई गिला-शिकवा होना नहीं चाहिए। 

मां की कलाएं अब मेरे बच्चों को विरासत में मिल गयी हैं। रायन और आरिन म्यूजिक में अव्वल हैं, की-बोर्ड, तबला सीख रहे हैं। मेरे बच्चे फुल ऑफ लाइफ हैं, इसका श्रेय भी मेरे परिवार, खासकर मां को जाता है। आज अगर लोग मुझे एक कंप्लीट अभिनेत्री, परिपूर्ण मां का दर्जा देते हैं, तो उसके पीछे श्रेय मुझे मां से मिले संस्कारों को जाता है। शादी के बाद डॉक्टर श्रीराम नेने ने मुझे वह जिंदगी दी, जिससे सामजंस्य बिठा पायी। मेरे बच्चों के लिए चाहे उनकी मां अभिनेत्री है, मगर उन्हें यह अहसास हो चुका है कि अभिनय को अपनी जागीर नहीं समझना चाहिए। अगर उनमें अभिनय की कला है, तो उसे निखारना होगा। किस्मत साथ दे, तो वे अभिनय में आ भी सकते हैं। मां ने हमेशा कहा कि रेत को मुट्ठी में बंद कर कस कर ना पकड़ना, क्योंकि कस कर पकड़ी रेत मुट्ठी से छूट जाती है। बच्चों में जबर्दस्ती ऐसे संस्कार ना डालो कि बच्चे उकता जाएं ! प्यार से, संयम से और धीरज से बच्चों को अपनाना ! मेरा जीवन, कैरिअर सब कुछ मां की देन है। पिता जी(शंकर दीक्षित) के गुजरने के बाद मेरी मां ही मेरे परिवार का अटूट हिस्सा हैं।