विद्या बालन की फिल्मों में महिलाओं के लिए ‘सेल्फ डिस्कवरी’ का मुद्दा जरूर नजर आता है। विद्या की लगभग सभी फिल्मों के केंद्र में वे स्वयं होती हैं। यही वजह है कि उनमें सेलेबल हीरो की कमी भी नजर नहीं आती ! पिछले वर्ष उनकी फिल्म शकुंतला देवी को खूब सराहा गया, तो हाल फिलहाल शेरनी ओटीटी (अमेजन प्राइम) रिलीज हुई है, जिसकी चर्चा हो रही है। विद्या से हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश

विद्या बालन की फिल्मों में महिलाओं के लिए ‘सेल्फ डिस्कवरी’ का मुद्दा जरूर नजर आता है। विद्या की लगभग सभी फिल्मों के केंद्र में वे स्वयं होती हैं। यही वजह है कि उनमें सेलेबल हीरो की कमी भी नजर नहीं आती ! पिछले वर्ष उनकी फिल्म शकुंतला देवी को खूब सराहा गया, तो हाल फिलहाल शेरनी ओटीटी (अमेजन प्राइम) रिलीज हुई है, जिसकी चर्चा हो रही है। विद्या से हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश

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विद्या बालन की फिल्मों में महिलाओं के लिए ‘सेल्फ डिस्कवरी’ का मुद्दा जरूर नजर आता है। विद्या की लगभग सभी फिल्मों के केंद्र में वे स्वयं होती हैं। यही वजह है कि उनमें सेलेबल हीरो की कमी भी नजर नहीं आती ! पिछले वर्ष उनकी फिल्म शकुंतला देवी को खूब सराहा गया, तो हाल फिलहाल शेरनी ओटीटी (अमेजन प्राइम) रिलीज हुई है, जिसकी चर्चा हो रही है। विद्या से हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश

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फिल्मी कैरिअर के लगभग 16 वर्षों में विद्या बालन ने जितने विविधतापूर्ण किरदार निभाए हैं, शायद ही किसी ने निभाए हों। विद्या को पिछले 5-6 वर्षों में ‘वन वुमन इंडस्ट्री’ कहा जाने लगा है। उनके किरदारों में कोई ना कोई संदेश छिपा होता है। चाहे वह हे बेबी जैसी कमर्शियल फिल्म हो, कहानी जैसी थ्रिलर हो या फिर तुम्हारी सुलु जैसी फिल्म। कुछ समय पहले ओटीटी प्लेटफॉर्म (अमेजन प्राइम) पर उनकी फिल्म शेरनी रिलीज हुई है, जिसे खूब तारीफ मिल रही है। प्रस्तुत है विद्या बालन से उनके किरदारों, जीवन और फिल्मों को ले कर एक बातचीत-

आपकी तमाम फिल्मों में एक निडर और साहसी औरत नजर आती है। शेरनी में भी आपका किरदार ऐसा ही है। वास्तविक जीवन में आप कितनी साहसी और निडर है?

मैं साहसी हूं ! पर शायद खुद को निडर नहीं कह सकती। साहसी इसलिए कि मैंने ‘नॉन कन्वेंशनल’ भूमिकाएं की हैं, उन्हें पूरी ईमानदारी से निभाया है। सिल्क स्मिता जैसी साउथ की अभिनेत्री के जीवन को परदे पर निभाने में मुझे बहुत संतुष्टि मिली। जब एकता कपूर ने मुझे डर्टी पिक्चर फिल्म का ऑफर दिया, मुझे यह रोल चैलेंजिंग लगा और मैंने इसे करने के लिए हामी भर दी। इस रोल के लिए मुझे नेशनल अवॉर्ड मिला। कुछ इस तरह की अन्य फिल्में स्वीकारने में मुझे हिचकिचाहट महसूस नहीं हुई, मैंने साहस किया और फिल्में कीं। डर्टी पिक्चर फिल्म करना मेरे परिवार खासकर मेरे अप्पा (पिता जी) के लिए एक शॉक था, बावजूद मैंने इस तरह की बोल्ड फिल्म करने का साहस जुटाया। हां, मैं निडर नहीं हूं, क्योंकि सामनेवाले की बातें नागवार गुजरती हैं, तो मैं निर्भीकता से उसे यह बात नहीं कह पाती। अकसर ऐसा होता है, जिन बातों को आप सुनना नहीं चाहते, आप उन्हें बर्दाश्त नहीं करते और कभी सौम्यता से तो कभी दबाव के साथ उन्हें यह बात बता देते हैं। मैं उम्र से तो परिपक्व हुई, पर कुछ सामनेवाले का लिहाज कर लेती हूं। मैं अपने भीतर बहुत ईमानदार हूं, लेकिन दूसरों के बारे में ईमानदार राय देने में मुझे कठिनाई महसूस होती है।

आपने कई कॉम्प्लेक्स (जटिल) किरदार निभाए। ऐसे में कभी यह नहीं सोचतीं कि कहीं टाइप्ड रोल ही मिलने ना लगें। कितना आसान या मुश्किल होता है इस तरह के किरदारों के साथ आगे बढ़ना?

फिल्म कलाकारों के लिए अकसर टफ किरदार चैलेंज के रूप में सामने आते हैं। उन्हें स्विच ऑन और स्विच ऑफ करना आना चाहिए। फिल्म खत्म होते-होते एक्टर्स को उनके निभाए किरदारों से बाहर निकलना चाहिए। अगर मुश्किल किरदार उनके दिलोदिमाग में रह गए, तो मानसिक रूप से यह बात अच्छी नहीं होगी। मैं अभी इस कला में मास्टर नहीं हो पायी हूं कि फिल्म का आखिरी शॉट होते ही मैं अपने किरदार को गुडबाय कह सकूं। अपने किरदारों का बैगेज ले कर आगे नहीं बढ़ती मैं, लेकिन मेरा तरीका कुछ अलग है।

फिर कैसे स्विच ऑफ हो जाती हैं आप?

मैं अपने परिवार के साथ वक्त बिताती हूं। मेरी दीदी प्रिया के टि्वंस बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी। इन बच्चों की ऊर्जा से मैं भी नयी ऊर्जा से भर जाती हूं। परिवार के साथ वक्त बिताने से मैं अपना पास्ट, अपने निभाए किरदारों को भूल जाती हूं। बैगेज दिमाग में रखती नहीं। सिद्धार्थ को वक्त है, तो शूटिंग के बाद हम कहीं घूमने निकल पड़ते हैं। हालांकि उस दौरान भी मैं अगली फिल्म के किरदार पर काम कर रही होती हूं।

अच्छा एक बार फिर लौटते हैं आपकी फिल्म शेरनी की ओर। इसके निर्देशक अमित मसूरकर के साथ आपने पहली बार फिल्म की। उनके काम करने का तरीका कितना अलग है? आपने भी कुछ इनपुट्स दिए फिल्म के लिए?

अमित मसूरकर का नाम पहली बार मैंने सुना जब न्यूटन फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। इसके निर्देशक अमित मसूरकर थे। उन्होंने2019 में मुझे फोन पर बताया कि उनके पास एक महिला फॉरेस्ट ऑफिसर की कहानी है, यह किरदार मुझे प्रभावित करता है। मैंने शेरनी की कहानी सुनी और वाकई इसने मुझे भी प्रभावित किया। अमित मसूरकर ने प्रोटोगनिस्ट विद्या विन्सेंट की डिटेल्ड तैयारी की थी। विद्या विन्सेंट कम बोलती है, लेकिन भावनाओं का बवंडर उसके दिल में खौल रहा है। विद्या की वेशभूषा, उसकी बॉडी लैंग्वेज सब कुछ बहुत अच्छे तरीके से तैयार किया गया था। आज महिलाएं विद्या विन्सेंट के साथ खुद को रिलेट कर रही हैं, तो इसका श्रेय विद्या बालन को नहीं, अमित मसूरकर को जाता है। विद्या बालन से विद्या विन्सेंट का परकाया प्रवेश संभव हुआ। चूंकि निर्देशक अमित ने हर किरदार के लिए पूरी तैयारी पहले से की थी, मुझे कुछ इनपुट्स देने नहीं पड़े।

आप खुद को शेरनी फिल्म की विद्या विन्सेंट के कितना करीब पाती हैं?

कुछ मुद्दों पर मैं विद्या विन्सेंट से खुद को रिलेट करती हूं। जैसा मैंने कहा कि यह किरदार इंट्रोवर्ट है, पर विद्या बालन नहीं। मैं बातूनी हूं, लेकिन जो बातें मुझे अखरती हैं, उन्हें विद्या विन्सेंट की तरह खुल कर बोल नहीं पाती। हमारा काम और फैमिली बैकग्राउंड पूरी तरह से अलग है। लेकिन यह सचाई है कि विद्या फॉरेस्ट ऑफिसर है, लेकिन उसके वरिष्ठ, मंत्री उसकी बातों को नजरअंदाज कर देते हैं, उसे सीरियसली नहीं लिया जाता। कई कामकाजी महिलाओं ने इस बात पर अपनी सहमति जतायी है कि बड़े ओहदे पर काम करने के बावजूद उनके वरिष्ठ उनको नजरअंदाज करते हैं। ऐसा ही विद्या विन्सेंट के साथ भी होता है।

आपके लिए विद्या विन्सेंट का किरदार निभाना कितना मुश्किल रहा और इसके लिए आपने कितना होमवर्क किया?

मैंने कुछ महिला फॉरेस्ट ऑफिसर्स से मिल कर उनकी जिम्मेदारियां, उनका वर्क प्रोफाइल, उनके चैलेंजेज के बारे में जाना। ये महिलाएं काम के साथ परिवार को कैसे मैनेज करती हैं, यह जानना भी जरूरी था। जंगलों में काम करना कोई आसान बात नहीं है। मुझे कुछ लिंक्स दिए गए थे, जंगलों पर कुछ डॉक्यूमेंट्रीज थीं, तो इन्हें भी मैंने देखा। 

इस मुकाम पर आ कर पीछे मुड़ कर देखती हैं, तो क्या पाती हैं?

मेरी जर्नी तो आप सभी के सामने है। नॉन फिल्मी परिवार से आ कर यहां अपनी जगह बनायी। बचपन में अमिताभ बच्चन-श्रीदेवी की फिल्मों ने मुझे प्रभावित किया। फिर सेंट जेवियर्स कॉलेज में पढ़ते हुए एड गुरु प्रदीप सरकार कॉलेज आए और उन्होंने ऑडिशन लिया। मैं उनके ऑडिशन में पास हुई और फिर दर्जनों विज्ञापन फिल्में करने के बाद बड़ी जद्दोजहद से उनके निर्देशन में परिणीता फिल्म मुझे मिली। मेरी हर फिल्म ने मुझे एक पायदान आगे बढ़ाया है। मेरा अभिनय सफर बहुत प्यारा, ग्रोथ देनेवाला रहा। देखते-देखते 16 वर्ष बीत चुके ! इसी सफर में सिद्धार्थ (रॉय कपूर) मिले, तो जिंदगी और भी खुशगवार हुई।

अगली फिल्म कौन सी होगी?

तुम्हारी सुलु फेम सुरेश त्रिवेणी की अगली फिल्म की शूटिंग शुरू होने जा रही है। उसी की तैयारी है। 

ग्लैमर की दुनिया बाहर से जितनी सुंदर दिखती है, अंदर से उतनी ही मुश्किल भी होती है। इन दिनों कई बॉलीवुड कलाकार खुल कर अपने डिप्रेशन के बारे में बात कर रहे हैं। क्या कभी डिप्रेशन जैसी परेशानी को आपने भी झेला है? अगर हां, तो कैसे निजात पाया आपने इससे?

शुक्र है ऊपरवाले का कि टफ किरदार निभाने के कारण कभी डिप्रेशन में नहीं गयी। लेकिन यह बात सही है कि आजकल के हालात में फिजिकल हेल्थ के साथ मेंटल हेल्थ पर बहुत ज्यादा ध्यान देना जरूरी हो गया है, जिसे जाने अनजाने हम नजरअंदाज करते हैं। समाज के हर स्तर पर डिप्रेशन की समस्या है। मेरे परिवार में हम सभी अम्मा, अप्पा, दीदी, दादी एक-दूसरे से सारी बातें शेअर करते हैं। मैंने हमेशा अपने दिल की हर बात घर में शेअर की। मुझे जब डिप्रेशन ने घेर लिया, तो शुरू में समझ में नहीं आया। इस घटना को अब 10-12 वर्ष हो चुके हैं। मुझे इस बात से डिप्रेशन आया था कि मेरा फिल्म कैरिअर शुरू होने के बाद मेरे वजन, मेरे परिधान जैसे मुद्दों पर मेरी खिल्ली उड़ायी जाती थी। रेडियो जॉकीज तक मुझ पर फब्तियां कसते थे ! मेरे परफॉर्मेंस पर बहुत कम कम लिखा या बोला जाता था। सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग होती थी, जिसे लगातार बर्दाश्त करना मेरे लिए मुश्किल हो गया था। हर दिन मैं अपनी मम्मी के पास वही राग दोहराती थी। मम्मी ने बचपन से प्रेअर्स करने को कहा था। वह मैं कर रही थी, लेकिन फिर भी परेशानी का हल नहीं निकला। हर फिल्म की शूटिंग खत्म होते होते मैं बीमार पड़ने लगी। फिर मेरी मेरी मम्मी मुझे हीलर निधू कपूर के पास ले गयीं। उनके पास जा कर मैंने सिर्फ अपने दिल का बोझ हल्का किया। जब बोल-बोल कर मेरा दिल शांत हुआ, तो मेरा डिप्रेशन उड़नछू हो गया। अपने दिल में नेगेटिव विचारों काे रखना और उसी पर सोचना किसी के लिए भी सही नहीं है। डिप्रेशन पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक पाया जाता है।