मिस्टर परफेक्शिस्ट आमिर खान का जादू पिछली कुछ फिल्मों से कम हुआ है लेकिन उनका कमाल है कि वह हमेशा प्रयोग करते हैं, अलग विषयों पर फिल्म बनाते हैं और जोखिम उठाते हैं। सितारे जमीन पर फिल्म तारे जमीं पर...की सीक्वल नहीं है, जैसी कि अटकलें लगाई जा रही थीं। चूंकि दोनों फिल्मों की थीम लगभग समान थी, इसलिए

मिस्टर परफेक्शिस्ट आमिर खान का जादू पिछली कुछ फिल्मों से कम हुआ है लेकिन उनका कमाल है कि वह हमेशा प्रयोग करते हैं, अलग विषयों पर फिल्म बनाते हैं और जोखिम उठाते हैं। सितारे जमीन पर फिल्म तारे जमीं पर...की सीक्वल नहीं है, जैसी कि अटकलें लगाई जा रही थीं। चूंकि दोनों फिल्मों की थीम लगभग समान थी, इसलिए

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मिस्टर परफेक्शिस्ट आमिर खान का जादू पिछली कुछ फिल्मों से कम हुआ है लेकिन उनका कमाल है कि वह हमेशा प्रयोग करते हैं, अलग विषयों पर फिल्म बनाते हैं और जोखिम उठाते हैं। सितारे जमीन पर फिल्म तारे जमीं पर...की सीक्वल नहीं है, जैसी कि अटकलें लगाई जा रही थीं। चूंकि दोनों फिल्मों की थीम लगभग समान थी, इसलिए

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मिस्टर परफेक्शिस्ट आमिर खान का जादू पिछली कुछ फिल्मों से कम हुआ है लेकिन उनका कमाल है कि वह हमेशा प्रयोग करते हैं, अलग विषयों पर फिल्म बनाते हैं और जोखिम उठाते हैं। सितारे जमीन पर फिल्म तारे जमीं पर...की सीक्वल नहीं है, जैसी कि अटकलें लगाई जा रही थीं। चूंकि दोनों फिल्मों की थीम लगभग समान थी, इसलिए तुलना करना लाजिमी है। तारे जमीं पर बहुत प्यारी और गहरी फिल्म थी, जबकि सितारे जमीन पर थोड़ी मजाकिया, चुलबुली और हंसी-हंसी में संदेश देने वाली फिल्म है। फिल्म दिव्यागों पर बनी है। रीअल बच्चों ने ऐक्टिंग की है, मगर ये बच्चे कितने सक्षम हो सकते हैं, यह फिल्म देखकर पता चल जाता है। फिल्म का सूत्र वाक्य है- सबका अपना-अपना नॉर्मल। जिन बच्चों को समाज या परिवार नॉर्मल नहीं समझ पाता, वे कितने प्यारे, संवेदनशील और स्नेह से भरे हैं, यही फिल्म का संदेश है। यह संदेश उपदेश देकर नहीं बल्कि हंसी-मजाक और हलके-फुलके अंदाज में दिया गया है। दूसरी ओर जो लोग समाज की नजर में नॉर्मल समझे जाते हैं, वे कितनी बार और कहां-कहां असामान्य हरकतें करते हैं, यह भी इस फिल्म में दर्शाया गया है। समस्या यह है कि एक बेहद संवेदनशील कहानी की बुनावट में कहीं दिक्कत है। इसे जितनी गहरायी के साथ बुना जाना चाहिए था, नहीं हो पाया, एडिटिंग में भी कहीं कोई कमी दिखी। एक खूसट बास्केटबॉल कोच के तौर पर आमिर खान बहुत प्रभावित नहीं करते। उनकी तनी हुई भवें या अजीबोगरीब ढंग से तिरछे होते होंठ कई बार परेशान करते हैं। ऐसा मेकअप शायद उनके किरदार के हिसाब से किया गया होगा, मगर आमिर इसमें जमते नहीं। आमिर की पत्नी के छोटे से रोल में जेनेलिया फिल्म की शुरुआत में अपने डायलॉग दक्षिण भारतीय लहजे में बोलती दिखायी देती हैं, मगर इंटरवल के बाद शायद उन्होंने हिन्दी में बोलने की प्रैक्टिस कर ली और वह बाद के हिस्से में ज्यादा सही तरीके से अपने संवाद बोलती हैं।

यों तो थिएटर अब सूने पड़ते जा रहे हैं लेकिन इस फिल्म के लिए थिएटरों में चहल-पहल दिख रही है। इस फिल्म को देख कर बच्चे हंस-हंस कर लोटपोट हुए जा रहे थे, तो यह फिल्म की सफलता कही जाएगी। इस फिल्म के सबसे खूबसूरत दृश्य वे हैं, जिनमें बास्केटबॉल चैंपियनशिप में हारने के बाद भी बच्चे विनर टीम के साथ जश्न में डूब जाते हैं, जबकि उनके कोच उदास हो जाते हैं। ये बच्चे सिखाते हैं कि हार-जीत तो खेल का हिस्सा है और जीतेगा तो कोई एक ही। फिर भी अगर यह कहा जाए कि तारे जमीं पर...की तरह यह फिल्म लंबे समय तक जेहन में जिंदा रह जाएगी तो शायद यह अतिशयोक्ति होगी। इस फिल्म को देखने जा रहे हों तो आमिर की पुरानी फिल्म को दिल से निकाल कर जाएं, अन्यथा निराशा होगी। बच्चों के साथ गरमी की इन छुट्टियों में मौज-मस्ती करनी हो तो यह फिल्म निराश नहीं करेगी।