चूड़ियां घर में पॉजिटिव ऊर्जा कायम रखती हैं। इससे जुड़ी ढेरों जानकारी देर रही हैं ज्योतिषाचार्य डॉ. वाई राखी। चूड़ियां ज्यादातर हर कौम की महिलाएं पहनती हैं। वजह इसकी जो भी है, लेकिन ज्याेतिषाचार्य मानते हैं कि चूड़ियों की ध्वनि घर में सकारात्मकता ले कर कर आती है। सुहागिनें ही नहीं, कुंआरी कन्या भी

चूड़ियां घर में पॉजिटिव ऊर्जा कायम रखती हैं। इससे जुड़ी ढेरों जानकारी देर रही हैं ज्योतिषाचार्य डॉ. वाई राखी। चूड़ियां ज्यादातर हर कौम की महिलाएं पहनती हैं। वजह इसकी जो भी है, लेकिन ज्याेतिषाचार्य मानते हैं कि चूड़ियों की ध्वनि घर में सकारात्मकता ले कर कर आती है। सुहागिनें ही नहीं, कुंआरी कन्या भी

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चूड़ियां घर में पॉजिटिव ऊर्जा कायम रखती हैं। इससे जुड़ी ढेरों जानकारी देर रही हैं ज्योतिषाचार्य डॉ. वाई राखी। चूड़ियां ज्यादातर हर कौम की महिलाएं पहनती हैं। वजह इसकी जो भी है, लेकिन ज्याेतिषाचार्य मानते हैं कि चूड़ियों की ध्वनि घर में सकारात्मकता ले कर कर आती है। सुहागिनें ही नहीं, कुंआरी कन्या भी

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चूड़ियां घर में पॉजिटिव ऊर्जा कायम रखती हैं। इससे जुड़ी ढेरों जानकारी देर रही हैं ज्योतिषाचार्य डॉ. वाई राखी।

चूड़ियां ज्यादातर हर कौम की महिलाएं पहनती हैं। वजह इसकी जो भी है, लेकिन ज्याेतिषाचार्य मानते हैं कि चूड़ियों की ध्वनि घर में सकारात्मकता ले कर कर आती है। सुहागिनें ही नहीं, कुंआरी कन्या भी चूड़ियां पहनती हैं। भारत के ज्यादातर राज्यों में दुलहनों के लिए शादी के बाद खास चूड़ियां पहनने की प्रथा है।

चूड़ी जो खनके हाथों में

हमारी फिल्म इंडस्ट्री में चूड़ियों पर कई गाने देखने और सुनने को मिल जाएंगे, जिन्हें देख व सुन कर खयाल आता है कि आखिर महिलाएं चूड़ियां पहनती ही क्यों हैं? क्या वे सिर्फ शादीशुदा होने के संकेत के रूप में चूड़ियां पहनती हैं? क्या चूड़ियों का रिश्ता सिर्फ और सिर्फ पति से है? ऐसा होता तो कुंआरी कन्याएं चूड़ियां ना पहनतीं।

चूड़ी का महत्व

पॉजिटिव एनर्जी देती हैं चूड़ियां

महिलाओं के सोलह शृंगार में चूड़ी का बहुत महत्व है। दरअसल, चूड़ी शुक्र ग्रह को स्ट्रॉन्ग रखती है और इससे मैरिड लाइफ अच्छी होती है। इसीलिए शादी के बाद चूड़ी पहनना जरूरी बताते हैं। पंजाब में शादी पर दुलहन को चूड़ा पहनाया जाता है। इसे 45 दिन पहनना जरूरी बताते हैं। चूड़ा मामा देते हैं। इसे पहनाने और बढ़ाने की तिथि होती है। उसके बाद कांच की चूड़ियां पहनायी जाती हैं। देवी पूजा में चूड़ियां अर्पण करने की भी प्रथा है। चूड़ियां कई तरह की होती हैं। चांदी, हीरे, लाख, प्लास्टिक, मेटल और सबसे महत्वूर्ण कांच की चूड़ी। कांच की चूड़ी को सबसे शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। हर राज्य और क्षेत्र के चूड़ियों को ले कर अलग-अलग रिवाज है। मध्य प्रदेश में शादी के बाद काली चूड़ियां एक साल तक पहनने का रिवाज है। पंजाब में एक साल तक शादी का चूड़ा पहनने का रिवाज है। बंगालियों में शाखा पोला पहना जाता है। वहीं अगर हम बात करें उत्तर प्रदेश की, शादी के बाद लाल और हरी चूड़ियां जरूर पहनी जाती हैं। राजस्थान व बिहार में शादी के बाद लाख की चूड़ियां शुभ मानी जाती हैं।

भाग्य उदय करती चूड़ियां

चूड़ियों का नाता शुद्धता से है। हरी चूड़ी मानसिक शांति का प्रतीक है। लाल चूड़ी ऊर्जा का प्रतीक है। चूड़ियां पहनने से कलाइयों की खूबसूरती बढ़ती है, रोग व कष्ट दूर रहते हैं। चूड़ी मन की शांति का प्रतीक है। सुहाग और शादी का प्रतीक है। सुहागिनों को अपनी कलाइयों में लाख, कांच, हीरे, सोने या चांदी की चूड़ियां पहननी चाहिए। इससे पति और पत्नी का भाग्य उदय होता है। पति अगर लाख की चूड़ियां तीज या करवाचौथ पर अपनी पत्नी तो पहना दे तो उसका भाग्य उदय होता है। कहते हैं जो पति अपनी पत्नी को सोने की चूड़ियां भेंट करता है, वह दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करता है।