महलिाओं द्वारा चूड़ियां पहनने की परंपरा सदियों से रही है। इन्हें सौभाग्य की नशिानी भी माना जाता है। इन्हें पहनने के पीछे कई वैज्ञानकि कारण हैं। पहले जमाने में जहां महलिाएं चूड़ियां पहनती थीं, वहीं पुरुष भी हाथ में इसी तरह का कड़ा पहना करते थे। कलाइयों में कई महत्वपूर्ण प्रेशर पॉइंट्स होते हैं, जनि

महलिाओं द्वारा चूड़ियां पहनने की परंपरा सदियों से रही है। इन्हें सौभाग्य की नशिानी भी माना जाता है। इन्हें पहनने के पीछे कई वैज्ञानकि कारण हैं। पहले जमाने में जहां महलिाएं चूड़ियां पहनती थीं, वहीं पुरुष भी हाथ में इसी तरह का कड़ा पहना करते थे। कलाइयों में कई महत्वपूर्ण प्रेशर पॉइंट्स होते हैं, जनि

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महलिाओं द्वारा चूड़ियां पहनने की परंपरा सदियों से रही है। इन्हें सौभाग्य की नशिानी भी माना जाता है। इन्हें पहनने के पीछे कई वैज्ञानकि कारण हैं। पहले जमाने में जहां महलिाएं चूड़ियां पहनती थीं, वहीं पुरुष भी हाथ में इसी तरह का कड़ा पहना करते थे। कलाइयों में कई महत्वपूर्ण प्रेशर पॉइंट्स होते हैं, जनि

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महिलाअों द्वारा चूड़ियां पहनने की परंपरा सदियों से रही है। इन्हें सौभाग्य की निशानी भी माना जाता है। इन्हें पहनने के पीछे कई वैज्ञानिक कारण हैं। पहले जमाने में जहां महिलाएं चूड़ियां पहनती थीं, वहीं पुरुष भी हाथ में इसी तरह का कड़ा पहना करते थे। कलाइयों में कई महत्वपूर्ण प्रेशर पॉइंट्स होते हैं, जिन पर दबाव पड़ने से हमारा स्वास्थ्य ठीक रहता है। कलाइयों में जहां मणिबंध होता है, वहां के प्रेशर पॉइंट्स महिलाअों के यूटरस अौर अोवरीज से जुड़े होते हैं। चूड़ियां पहनने से इन प्रेशर पॉइंट्स पर दबाव पड़ता है, जिस वजह से स्त्री स्वास्थ्य पर पॉजिटिव असर पड़ता है।
हमारी कलाइयों का भाग हमेशा एक्टिव रहता है, यहीं से नब्ज देख कर बीमारियों का पता लगाया जाता है। चूड़ियां या दस्तबंद से उत्पन्न होनेवाले घर्षण से रक्त संचार बढ़ता है। हमारी त्वचा से भी जो विद्युत प्रवाह होता है, वह चूड़ियां की गोल शेप होने से बाहर नहीं निकलता अौर हमारे ही शरीर में अवशोषित हो जाता है।     
सातवें महीने में गर्भवती िस्त्रयों की गोदभराई की जाती है। इस रस्म में गर्भवती को नयी चूड़ियां भेंट की जाती हैं। कहते हैं कि सातवें महीने से शिशु के मस्तिष्क के सेल विकसित होने लगते हैं अौर वह ध्वनियों को पहचानना शुरू कर देता है। चूड़ियां की खनखनाहट की अावाज से शिशु पर पॉजिटिव असर पड़ता है।    
कांच की चूड़ियां पर हुए एक शोध से पता चला है कि जो महिलाएं कांच के बजाय प्लास्टिक या किसी अन्य धातु की चूड़ियां पहनती हैं, उन्होंने ज्यादा तनाव अौर थकान का अहसास किया। जबकि कांच की चूड़ियां की खनखनाहट मस्तिष्क को शांत करके महिलाअों को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाती है।
 कांच की चूड़ियां जब अापस में बजती हैं, तो उनसे निकलनेवाली ध्वनि तरंगें अासपास के वातावरण से पॉजिटिव एनर्जी को एब्जॉर्ब करती हैं, जिनसे पहननेवाले को फायदा होता है। चूड़ियां की ध्वनि के कारण नेगेटिविटी अौर बुरी नजर भी पास नहीं फटकते। कई बार कांच की चूड़ियां बिना किसी वजह के टूट जाती हैं। ऐसा हमारे शरीर में उत्पन्न जबर्दस्त नेगेटिविटी के कारण होता है।
चूड़ियां अामतौर पर कांच, चांदी, तांबा, लकड़ी, लाख अादि से बनी होती हैं। भारतीय परंपरा में सोने अौर चांदी की चूड़ियां पहनने का रिवाज है। हाथ के संपर्क में जब ये धातुएं अाती हैं, तो इन धातुअों के गुण भी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जिनसे हडि्डयां मजबूत बनती हैं। अायुर्वेद में भी सोने अौर चांदी की भस्म को शक्तिवर्धक दवाअों में मिलाया जाता है।
अलग रंगों की चूड़ियां पहनने के अलग फायदे होते हैं। कुछ प्रांतों में दुलहनें हरे रंग की चूड़ियां पहनती हैं। यह रंग खुशहाली अौर फर्टिलिटी का प्रतीक है। बंगाल में दुलहनों द्वारा सीप अौर लाल मूंगे की चूड़ियां पहनने की परंपरा है, जिसे शाखा-पौला कहा जाता है।