गरमियों की छुटि्टयाें में मालती वतवार अपने चाचा जी के यहां जाया करती थीं। घर के सारे बच्चे मिल कर खूब इंडोर गेम्स खेलते थे। शतरंज का चस्का उन्हें वहीं से लगा। बड़ी हो कर मालती ने कॉलेज में शतरंज के कई टूर्नामेंट खेले अौर सभी में जीत ही हासिल की। वर्तमान में वे माउंट लिटेरा इंटरनेशनल स्कूल, मुंबई

गरमियों की छुटि्टयाें में मालती वतवार अपने चाचा जी के यहां जाया करती थीं। घर के सारे बच्चे मिल कर खूब इंडोर गेम्स खेलते थे। शतरंज का चस्का उन्हें वहीं से लगा। बड़ी हो कर मालती ने कॉलेज में शतरंज के कई टूर्नामेंट खेले अौर सभी में जीत ही हासिल की। वर्तमान में वे माउंट लिटेरा इंटरनेशनल स्कूल, मुंबई

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गरमियों की छुटि्टयाें में मालती वतवार अपने चाचा जी के यहां जाया करती थीं। घर के सारे बच्चे मिल कर खूब इंडोर गेम्स खेलते थे। शतरंज का चस्का उन्हें वहीं से लगा। बड़ी हो कर मालती ने कॉलेज में शतरंज के कई टूर्नामेंट खेले अौर सभी में जीत ही हासिल की। वर्तमान में वे माउंट लिटेरा इंटरनेशनल स्कूल, मुंबई

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गरमियों की छुटि्टयाें में मालती वतवार अपने चाचा जी के यहां जाया करती थीं। घर के सारे बच्चे मिल कर खूब इंडोर गेम्स खेलते थे। शतरंज का चस्का उन्हें वहीं से लगा। बड़ी हो कर मालती ने कॉलेज में शतरंज के कई टूर्नामेंट खेले अौर सभी में जीत ही हासिल की। वर्तमान में वे माउंट लिटेरा इंटरनेशनल स्कूल, मुंबई में चेस कोच के तौर पर काम कर रही हैं।
नेशनल लेवल तक खेल चुकी मालती ने शतरंज को कैरिअर बनाने के सवाल पर बताया, ‘‘शतरंज मेरे जीवन का हिस्सा बन चुका था। सोचा कि क्यों ना इसी को अपना कैरिअर बनाया जाए। 1999 से मैंने अपना कैरिअर शुरू किया। मुंबई चेस एसोसिएशन के साथ जुड़ी अौर कई इंटर स्कूल व कॉलेज में चेस टूर्नामेंट कंडक्ट कराए।’’
मालती कैरिअर की शुरुअात में छोटे बच्चों को उनकी छुटि्टयों के दिनाें में शतरंज खेलना सिखाती थीं। पहले कम बच्चे ही शतरंज सीखने के लिए अाते थे। शतरंज के हर नन्हे खिलाड़ी से 400 रुपए की फीस लेती थीं। धीरे-धीरे अभिभावकों ने शतरंज खेलते बच्चों में बदलाव देखा। बच्चों के साथ-साथ उनके पेरेंट्स को शतरंज के खेल में ज्यादा रुचि होने लगी है। उसकी वजह है यह दिमागी कसरत का खेल है, जिसमें बच्चों का ध्यान अासानी से केंद्रित होता है।
शादी के बाद मालती के पति ने शतरंज के प्रति उनके लगाव अौर कैरिअर को ले कर रुझान को देखते हुए उन्हें अौर भी प्रोत्साहित किया। बच्चों की संख्या बढ़ने लगी अौर चेस टीचिंग का क्रेज पेरेंट्स के बीच भी बढ़ने लगा। वे हर बच्चे से 1200 रुपए फीस लेती हैं। महीने में 30 से 35 हजार की कमाई होती है। इस रोचक खेल को बच्चों को समझाना बहुत मेहनतभरा भले ही है, पर बच्चों के सीखने के बाद खुद को भी बहुत खुशी हासिल होती है।
मालती कहती हैं, ‘‘मेरी शतरंज क्लास की प्रसििद्ध देखते हुए सचिन तेंदुलकर ने अपने बेटे अर्जुन तेंदुलकर को शतरंज सिखाने की जिम्मेदारी मुझे दी। हफ्ते में एक बार मैं उसे शतरंज खिलाती हूं। मुझे अामिर खान की बेटी इरा खान, चंकी पांडे की बेटी अनन्या पांडे, अतुल अग्निहोत्री के बेटे अयान पांडे अौर अर्णब गोस्वामी के बेटे अार्सिमन गोस्वामी जैसी सेलेिब्रटीज के बच्चों को चेस सिखाने का मौका मिला।  
सफलता का मंत्र ः शतरंज खेलने व सिखाने की इच्छाशक्ति होनी चाहिए। शुरू में रुपए कमाने की हड़बड़ी ना दिखाएं, पहले इसमें डूबें, किनारा खुदबखुद मिल जाएगा।