Wednesday 02 June 2021 01:05 PM IST : By Shanno Shrivastava

वह अजीब सी लड़की

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‘‘रास्ता छोडि़ए। हटिए रास्ते से। दिख नहीं रहा है क्या, दोनों हाथों से ट्रे पकड़े कबसे खड़ी हूं। भगवान ने भी ना जाने कैसा पड़ोसी भेजा है।’’

एक अनजान लड़की को घर के दरवाजे पर चाय की ट्रे लिए खड़ा देख मैंने सवालिया नजर से देखा उसे।

‘‘अब घूरिए मत। पड़ोसी हूं आपकी। चाय ले कर आयी हूं आप लोगों के लिए, मम्मी ने जबर्दस्ती भेजा है। उन्हें ही शौक है पड़ोसियों से रिश्ता निभाने का। मेरा अपना कोई इंटरेस्ट नहीं है इन बातों में।’’

अजीब लड़की है यह। पहली बार कोई किसी से इस तरह बात करता है। मन ही मन सोचते हुए मैंने किनारे हट कर उसे अंदर जाने का रास्ता दे दिया।

‘‘नमस्ते आंटी, नमस्ते अंकल। मम्मी ने आप लोगों के लिए चाय और पोहा भेजा है। आप लोग आराम से चाय पी कर अपनी थकान मिटाइए, मैं थोड़ी देर बाद आ कर बरतन ले जाऊंगी।’’

वह जैसे धड़धड़ाती हुई आयी थी वैसे ही बंद कार्टन के ऊपर चाय की ट्रे रख कर वापस चली गयी।

‘‘किसकी लड़की है यह? ना कुछ पूछा, ना बताया और चुपचाप चाय-नाश्ता रख कर चली गयी?’’ मम्मी-पापा एक-दूसरे को नजर से देख ही रहे थे कि वह आधे रास्ते से वापस आ गयी।

‘‘मम्मी ने कहा था कि चुपचाप नाश्ता रख कर चली ना आना, अपना परिचय भी दे देना, और मैं हड़बड़ी में सब भूलभाल कर चली गयी। मैं उर्वशी हूं और हम बगल वाले घर में रहते हैं। आप लोगों के आने से मम्मी को बहुत खुशी है, बहुत दिनों से खाली पड़ा था ना यह घर इसलिए। मुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ता कोई रहे या खाली रहे, पर मम्मी रोज कहती थीं कि कोई आ जाए इस घर में, तो रौनक हो जाए। अब हो गयी उनकी रौनक और मेरी मुसीबत। अब रोज वे मुझे कुछ ना कुछ दे कर भेजा करेंगी यहां पर। आप लोग बहुत किस्मत वाले हैं, मम्मी जैसी अच्छे पड़ोसी मिले हैं आप लोगों को,’’ कह कर वह जोर से हंसी और ‘चलती हूं’ कह कर चली गयी।

लेकिन दो ही पल बाद दरवाजे से ही फिर वापस आ गयी और एक बड़े से कार्टन को हाथ से दबाते हुए पूछा, ‘‘इस पर बैठ जाऊं? कुछ टूटने वाला सामान तो नहीं है अंदर,’’ और हमारे कुछ जवाब देने से पहले ही उस पर बैठते हुए बोली, ‘‘होगा भी, तो कौन सा मेरे भार से टूटने वाला है। मम्मी कहती हैं कि मुझसे भारी तो रुई के फाहे होंगे।’’

‘‘आंटी जी, मैं यहां बैठ इसलिए गयी हूं, क्योंकि मुझे लग रहा है कि मम्मी ने मुझे कुछ और भी कहने को कहा था, जोकि मैं भूल रही हूं। अब वापस चली गयी, तो एक तो उनकी डांट खानी पड़ेगी दूसरे दोबारा आना पड़ेगा। इसलिए सोचा थोड़ी देर रुक ही जाऊं, शायद बात याद आ जाए।

‘‘अरे, आप लोगों ने चाय पीनी शुरू नहीं की अभी तक। ठंडी हो जाएगी,’’ कहते हुए उसने कप हम सबकी ओर
बढ़ा दिया।

‘‘देखिए, बैठने का फायदा हुआ ना। बात याद आ गयी मुझे। मम्मी ने कहा है कि मैं आप लोगों से कह दूं कि आप लोग डिनर की चिंता ना करिएगा, क्योंकि डिनर वे बना कर भेज देंगी। मैं ही ले कर आऊंगी, क्योंकि उनकी पार्सल गर्ल मैं ही हूं। मैं तो मना कर रही थी। कह रही थी कि आसपास इतने सारे टिफिन सर्विस वाले रेस्टोरेंट हैं, उनके नंबर दे देती हूं, मंगवा लेंगे आप लोग अपना खाना वहां से, पर वे मानें तब ना। वे तो बस दूसरों के लिए कुछ करने का मौका ढूंढ़ती रहती हैं।’’

मैंने घड़ी पर निगाह डाली, पूरे 20 मिनट हो चुके थे उस लड़की को घर में आए, पर इस 20 मिनट में वह एक मिनट के लिए भी चुप नहीं रही और ना ही मम्मी-पापा को मौका दिया कि वे अपनी तरफ से भी कुछ कह-पूछ सकें।

चाय चूंकि ठंडी हो चुकी थी, इसलिए हमने लंबे-लंबे घूंट भर कर कप खाली कर दिया। कप नीचे रखते ही उसने झटपट कप उठाया और चलने को हुई, ‘‘कप मैं लेती जा रही हूं, कटोरियां बाद में कभी भी ले जाऊंगी। कप यहां रहें, तो आप लोग सामान इधर-उधर करने में तोड़ देंगे, तो हमारा तो सेट खराब हो जाएगा, इसलिए इसे तो ले ही जाऊंगी।’’

इस बार वह गयी, तो हम फिर से इस उम्मीद से थोड़ी देर तक दरवाजे की तरफ देखते रहे कि अभी फिर से वापस आती ही होगी, पर जब थोड़ी देर तक वापस नहीं आयी, तो हम तीनों के मुंह से एक साथ ही निकल पड़ा, ‘‘बड़ी अजीब लड़की है।’’

मेरा ट्रांसफर इलाहाबाद से कानपुर हुआ था। मम्मी-पापा के साथ कानपुर में किराए पर लिए इस घर पर हमारा सामान ट्रक से उतरा ही था तभी वह लड़की, जिसने अपना नाम खुद ही उर्वशी बता दिया था, आ पहुंची थी। वह चाहे कितनी भी अजीब रही हो, पर उसके लाए चाय-नाश्ते ने हमारे थके शरीर में जान डाल दी और हम स्फूर्ति के साथ सामान की सेटिंग में लग गए।

‘‘टिंगटॉन्ग,’’ अपने मुंह से ही बेल की आवाज करती हुई 8 बजे वह फिर हाजिर थी हाथ में दो बड़े-बड़े कैसरोल ले कर।

‘‘डिनर ले आयी हूं। राजमा और रोटियां हैं। मम्मी तो चावल बना रही थीं, पर मैंने ही कहा रोटियां बना दो। कहीं शुगर-वुगर हुआ आप लोगों को, तो दोबारा रोटी बनानी पड़ेगी। रोटी ही ठीक है। खा कर शुगर वाले भी खुश और बिना शुगर वाले भी खुश।’’

‘‘अरे वाह ! काफी सामान लगा लिया है आप लोगों ने इतनी ही देर में,’’ कैसरोल पास की एक कुर्सी पर रख कर अब वह हमारे घर का घूम-घूम कर निरीक्षण करने लगी थी।

‘‘आंटी जी-अंकल जी, आप लोग यह कमरा लीजिएगा। बुजुर्ग लोगों के लिए यह कमरा ठीक रहेगा और आपके लिए वह कमरा ठीक रहेगा,’’ उसने मेरी तरफ देखते हुए कॉर्नर वाले कमरे की तरफ इशारा किया।

‘‘तुम्हें वास्तु ज्ञान है क्या बेटा?’’ मम्मी ने बहुत उत्साहित हो कर पूछा।

‘‘जी आंटी, थोड़ा-बहुत। पर वास्तु की सलाह मैं उसे देती हूं, जो जबर्दस्ती लेना चाहता है। खुद मैं ना उस पचड़े में पड़ती हूं और ना ही किसी और को उलझाना चाहती हूं। आप लोगों को यह सलाह मैं वास्तु के आधार पर नहीं, स्वास्थ्य और सुविधा को ध्यान में रख कर दे रही हूं। उस कमरे की खिड़की पूरब दिशा की ओर खुलती है। सुबह-सुबह की ताजी धूप और दिनभर की पूर्वी हवा आप लोगों के कमरे को तरोताजा रखेगी। और सबसे बड़ी बात उस कमरे की एक खिड़की पार्क की तरफ खुलती है। शाम को वहां खेलते बच्चों को देख कर आप लोगों को बहुत अच्छा लगेगा। जब आप सुबह-शाम लोगों को पार्क में टहलते देखेंगे, तो आप लोग भी रोज सैर करने निकलेंगे और स्वस्थ रहेंगे।’’

‘‘और आपके कमरे की एक खिड़की गर्ल्स कॉलेज की तरफ खुलेगी। आपकी सुबह-शाम भी अच्छे से कटेगी,’’ उसने धीरे से मेरे पास आ कर कहा, तो मैं बुरी तरह हड़बड़ा गया। पहली ही मुलाकात में कोई लड़की इतनी बेतकल्लुफ हो सकती है, यह मेरी तो सोच से परे था।

‘हे भगवान ! कैसी लड़की है यह?’
उसके जाते ही मैं मम्मी पर भड़क उठा, ‘‘मम्मी, इससे और इसके घर वालों से दूर ही रहिएगा। आज का खाना-नाश्ता ले लिया बहुत हो गया। कल से कुछ भी ले कर आए, तो उलटे पांव लौटा दीजिएगा और मुझे तो खासकर इन लोगों से दूर ही रहने दीजिएगा। अभी बता दे रहा हूं। कल से अगर यह लड़की घर में आयी, तो मैं चुपचाप अपने कमरे में चला जाऊंगा, आप मुझसे नाराज मत होइएगा।’’
मुझे शुरू से ही लोगों से ज्यादा मिलना-जुलना पसंद नहीं था। फिर ऐसे बिना मतलब बातें करने वाले और दूसरों के घरों में इंटरफेअर करनेवाले लोगों से तो सख्त नफरत थी मुझे। हालांकि मम्मी को मेरा अनसोशल होना पसंद नहीं था, पर अब उन्होंने मुझे रोकना-टोकना छोड़ दिया था। शायद बेमन से ही सही, मेरा स्वभाव अब बदलेगा नहीं, यह मान लिया था उन्होंने।

मैं पंजाब नेशनल बैंक में पीओ की पोस्ट पर तीन साल पहले नियुक्त हुआ था। पढ़ाई में शुरू से ही बहुत तेज रहा था। सपने तो प्रशासनिक सेवाओं में जाने का देखा था, पर दो बार लिखित परीक्षा तक तो पहुंचा, पर इससे आगे सफलता ना पा सका। बैंक पीओ में सलेक्शन हो गया, तो उसे ही जॉइन कर लिया। बचपन में सब मुझे जीनियस कहा करते थे। शायद इस वजह से मेरे अंदर घमंड भर गया था। हर एक को अपने से कमतर आंकने की मेरी आदत पड़ गयी थी। दिन-रात किताबों और कंप्यूटर में सिर गड़ाए मैं दुनियादारी को एकदम फालतू का विषय मानता था।

मम्मी की चलती, तो वे बहुत पहले ही अपने लिए बहू ले आयी होतीं, लेकिन मुझे अपने लिए कोई परफेक्ट मैच दिखता ही नहीं था। मुझे तलाश थी ‘ब्यूटी विद ब्रेन’ की, और वह भी एक ऐसी लड़की में, जो सास-ससुर की सेवा एक पैर पर खड़ी हो कर कर सके। अब ईश्वर ने कोई इतना अनोखा पीस बनाया ही नहीं, तो उसमें मेरी क्या गलती है। यह बात मम्मी को समझ में ही नहीं आती थी, इसलिए शादी को ले कर वे गाहेबगाहे मुझ पर अपना गुस्सा उतारती रहती थीं।

दूसरे दिन सुबह पेपर वाले के बेल बजाने से हमारी नींद खुली। खाली पड़े घर में किसी के आ जाने का संकेत बाहर से पा कर उसने बेल बजा दी थी, ‘‘सर, पेपर लगवाना है।’’

‘‘हां, टाइम्स ऑफ इंडिया और दैनिक जागरण डाल जाया करो।’’

‘‘कोई मैगजीन? हिंदी-इंग्लिश कोई भी। सारी मैगजीन मंगवाती है हमारी एजेंसी।’’

‘‘हां, मुझे हिंदी मैगजीन चाहिए, पर अगले महीने से। इस महीने तो सारा समय घर की सेटिंग में निकल जाएगा। पढ़ने का समय ही नहीं मिलेगा,’’ हाथ में चाय का कप लिए पेपर वाले की आवाज सुन कर बाहर आती हुई मम्मी ने कहा।

‘‘आंटी, मैं हिंदी-इंग्लिश दोनों की बहुत सारी मैगजीन लेती हूं। एक बार पढ़ने के बाद सब नयी ही पड़ी रहती हैं। मैं दे जाया करूंगी आपको। आप ना लीजिएगा पेपर वाले से। बिना मतलब पैसे वेस्ट जाएंगे।’’

बगल के घर से आवाज आयी, तो मैंने और मम्मी ने एक साथ उधर देखा। कार की ड्राइविंग सीट पर बैठी वही लड़की धीरे-धीरे अपनी कार रिवर्स करके गेट से बाहर करते हुए हमसे ही बात कर रही थी। वह शायद जल्दी में थी इसलिए रुकी नहीं, केवल हाथ से बाय का इशारा करती हुई निकल गयी।

‘‘यह तो कल वाली ही लड़की लग रही थी?’’ मम्मी बोली।

‘‘लग तो उसके जैसी ही रही थी, पर यह उसकी बहन होगी,’’ मैंने कहा, क्योंकि इस लड़की और कल वाली लड़की का कोई मेल नहीं था। कहां वह बेसिरपैर की बात करनेवाली बकबकी लड़की और कहां कलफदार साड़ी में लिपटी आत्मविश्वास से भरी यह चुस्त-दुरुस्त लड़की !

‘‘पर यह इतनी सुबह-सुबह कहां जा रही होगी?’’ मां ने ऐसे पूछा जैसे मुझे बता कर जा रही है। पर दिमाग यह निश्चित करने में लगा था कि यह कल वाली ही लड़की थी या उसकी बहन। शक्ल से तो कल वाली लड़की ही लग रही थी, पर जिस तरह से बात की है इसने, उससे तो यही लग रहा है कि वह यह लड़की हो ही नहीं सकती।

खैर, कोई भी हो मुझे क्या? सोचते हुए मैं तैयार होने के लिए अंदर आ गया।

मुझे इंटरनेट का कनेक्शन लेना था। कौन सा कनेक्शन लूं, यह जानने के लिए किसी पड़ोसी से जानकारी लेना जरूरी लग रहा था, इसलिए शाम को बार-बार बाहर निकल कर देख रहा था कि कोई दिखे तो उससे पूछूं। काफी देर तक भी जब कोई नहीं दिखा, तो मैंने मम्मी से कहा, ‘‘बगल वाले घर में उर्वशी को ही आवाज दे कर कहिए कि अपने भाई वगैरह किसी को भेजे, तो मैं उनसे पूछ लूं।’’

मम्मी के आवाज देने पर उर्वशी ही बाहर आयी, ‘‘जी आंटी।’’

‘‘बेटा, अनिरुद्ध को इंटरनेट कनेक्शन के लिए जानकारी लेनी थी, कोई हो तो भेजना जरा,’’ मम्मी का मतलब किसी पुरुष को भेजने से था।

‘‘आयी तो हूं मैं इतनी लंबी-चौड़ी, पूछिए क्या पूछना है?’’ उसने मम्मी की बात का जवाब उनके पीछे खड़े मुझे देखते हुए कहा और जोरदार ठहाके के साथ हंस पड़ी।

‘पागल कहीं की। इसके साथ सिर खपाने से तो अच्छा है मैं कल बैंक में पता कर लूंगा किसी से,’ सोच कर उसे इग्नोर करते हुए मैं अंदर जाने को मुड़ा तब तक उसकी आवाज सुनायी दी, ‘‘इंटरनेट का कनेक्शन लेना है ना। एयरटेल का ब्रॉडबैंड अच्छा है। 800 के प्लान में फिफ्टी एमबीपीएस की स्पीड और थाउजेंड जीबी डाटा मिलता है। हमने यही लगवा रखा है।’’

उसकी बात मैंने सुन ली, पर बदले में उस पर ऐसी नजर डाली कि उसको साफ-साफ समझ में आ गया कि उसकी दी सलाह को मैंने कोई तवज्जो नहीं दी है। हालांकि एकाध और लोगों से पता करने पर भी सबने एयरटेल को ही प्रेफर किया और मैंने लगवाया भी वही, पर जब दूसरे दिन उर्वशी ने यह जानना चाहा कि मैंने कनेक्शन ले लिया या नहीं, तो मैंने कहा कि मैंने कई लोगों से बात की। और लोगों ने भी एयरटेल को ही अच्छा बताया, तो मैंने वही लगवा लिया है। मुझे सोच कर अच्छा लगा कि समझ तो गयी ही होगी कि केवल उसकी सलाह पर मैंने विश्वास नहीं किया था।

पर मम्मी-पापा तो उर्वशी और उसकी मम्मी जैसी हेल्पफुल पड़ोसी पा कर धन्य हो गए थे।

‘‘किसी नयी जगह पर ऐसे पड़ोसी मिल जाएं, तो वहां एडजस्ट करना बड़ा आसान हो जाता है। किसी भी समस्या का समाधान चटपट हो जाता है।

‘‘सामान की सेटिंग हो जाए, तो एक दिन उन लोगों को खाने पर बुला लेना। बहुत मदद की है इन लोगों ने हमारी। खाने-पीने के बहाने एक-दूसरे को और अच्छी तरह जान भी लेंगे और धन्यवाद भी कह लेंगे उन्हें,’’ पापा ने मम्मी से कहा।

‘‘बुलाना होगा, तो किसी वर्किंग डे में लंच पर बुला लीजिएगा, ताकि मैं ना रहूं घर में। ऐसे लोगों को झेल पाना मेरे वश की बात नहीं है,’’ चूंकि प्रस्ताव पापा ने रखा था, इसलिए मैंने अपने स्वर में भरसक संयम बरतते हुए कहा। अगर यही बात मम्मी ने कही होती, तो मेरा रिएक्ट करने का तरीका कुछ और ही होता।

‘‘अनिरुद्ध, लोगों को इतना इग्नोर करना अच्छी बात नहीं है।’’

‘‘पापा, मैं सबको तो इग्नोर नहीं करता, पर उस लड़की से मुझे ना जाने क्यों प्रॉब्लम होती है। उसने अपना इंप्रेशन ही ऐसा डाला है कि देखते ही गुस्सा आ जाता है।’’

‘‘बेटा, अकसर ऐसा होता है कि शुरू में जिस लड़की को देखते ही गुस्सा आ जाता है, उससे ही बाद में हमें प्यार हो जाता है। बच कर ही रहना उससे,’’ पापा ने जोर-जोर से हंसते हुए कहा, तो मम्मी भी मुंह दबा कर हंस पड़ीं।

‘‘ऐसी ही लड़कियों से प्यार हो जाना होता मुझे, तो अब तक बहू के लिए तरस ना रही होतीं आप,’’ मैं मम्मी को घूरते हुए वाॅश बेसिन की ओर बढ़ गया।

नया शहर, नयी ब्रांच, नए लोग। सबके साथ तालमेल बिठाने में दिन कैसे गुजर जा रहे थे, पता ही नहीं चल रहा था। एक दिन सुबह-सुबह कानपुर में ही रहने वाले मेरे दोस्त अविनाश का फोन आ गया।

‘‘साले... 10 दिन से ऊपर हो गए तुझे कानपुर आए। अभी मिलने की फुरसत नहीं मिली तुझे।’’

‘‘अरे यार, मिलता हूं जल्दी ही किसी दिन। अभी तो घर और बैंक दोनों ही जगह व्यस्तता ज्यादा है।

‘‘वह तो मैं समझ सकता हूं यार, पर आज थोड़ा समय निकाल मेरे लिए, कुछ जरूरी काम है तुझसे। मैं 11 बजे के करीब तेरे बैंक आ रहा हूं।’’

11 बजे अविनाश मेरे पास आया, तो उसने थोड़ी देर के लिए मुझे अपने साथ स्टेट बैंक चलने की बात कही।

‘‘यार, स्टेट बैंक से लोन ले रहा हूं। अब तक तो अकेले चक्कर मार रहा था, पर अब तू आ गया है तो सोचा तुझे साथ ले कर चलूं, शायद काम जल्दी हो जाए। तू बैंक वाला है, तो बैंक वाले मेरी ना सही तेरी तो कद्र करेंगे ही।’’

अविनाश मेरे बचपन का दोस्त था, इसलिए उसके लिए समय निकालना ही था मुझे। स्टेट बैंक की ब्रांच भी पास में ही थी, इसलिए मैं अपने मैनेजर को बता कर थोड़ी देर के लिए अविनाश के साथ स्टेट बैंक चला गया।

मैंने अपना परिचय दिया, तो हमें तुरंत ही बैंक मैनेजर से मिलने के लिए उनके केबिन में जाने दिया गया। अंदर मैनेजर की कुर्सी पर बैठी लेडी को देख कर मुझे अपने आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ।

‘‘तुम ! मेरा मतलब आप ! आप यहां की मैनेजर हैं,’’ बोलने के बाद मैंने अपने स्वर को तुरंत परखने की कोशिश कि कहीं मेरे अंदर की तिरस्कार वाली भावना इस समय भी मेरे शब्दों में तो नहीं झलक आयी। उस दिन वाली लड़की यानी उर्वशी बैंक मैनेजर की कुर्सी पर विराजमान थी।

‘‘ओ, यू मिस्टर अनिरुद्ध। आई डिड नॉट नो, अपार्ट फ्रॉम बीइंग माई नेबर यू ऑलसो आर ए बैंकर। वॉट ए प्लेजेंट सरप्राइज। आई एम सो सॉरी, उस दिन के बाद से इतनी फुरसत ही नहीं मिली कि हम एक-दूसरे के बारे में कुछ जान पाएं या बता पाएं,’’ कहते हुए उसने हमें बैठने का आग्रह किया।

मैं यंत्रचालित सा सामने की कुर्सी पर बैठ गया, पर जिस रोब के साथ मैं अविनाश के साथ आया था अचानक वह ना जाने कहां गायब हो गया। मेरी जबान जैसे तालू से चिपक गयी। अविनाश ने उर्वशी से अपने लोन के संबंध में क्या-क्या बात की और कौन-कौन से पेपर साइन कराए, कब हमारे सामने चाय आयी और हमने पी कर खत्म कर डाली, मुझे कुछ जैसे याद ही नहीं रहा।

‘‘चलें,’’ कहते हुए जब अविनाश उठ कर खड़ा हुआ, तो मैं जैसे सोते से जागा।

‘‘कभी घर पर आइए,’’ कहते हुए उर्वशी ने सलीके से हमसे हाथ मिला कर हमें विदा किया।

वहां से लौट कर जाने के बाद मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं अपना कुछ गंवा आया हूं वहां। आंखों के सामने बार-बार उसकी तसवीर आने लगी। उसके कहे शब्द और आत्मविश्वास से लबरेज उसका चेहरा मेरी आंखों के सामने हरदम घूमने लगा। मुझे लगने लगा कि मेरा चैन छिन गया है। जिसे मैं कल तक पागल, बेवकूफ, झल्ली ना जाने क्या-क्या संबोधन दिया कर रहा था, वह मुझसे योग्यता में चार कदम आगे है। हे भगवान ! यह क्या हो रहा है मुझे। दिन-रात अब उसका ही ध्यान क्यों आ रहा है मुझे। क्या जिससे पहली मुलाकात में नफरत करने लगा था, उससे दूसरी मुलाकात में मैं प्यार करने लगा हूं। मैं बेहद बेचैन रहने लगा। अपने दिल का हाल कहूं, तो किससे। मैं पहले से भी ज्यादा अपने आपमें सिमटने लगा।

‘‘अनिरुद्ध, तुझे एक बात बताऊंगी, तो मेरी ही तरह तू भी हैरान रह जाएगा,’’ एक दिन खाना खाते समय मम्मी ने मुझसे कहा।

‘‘कौन सी बात?’’

‘‘उर्वशी कॉलेज गोइंग गर्ल नहीं है, वह तो स्टेट बैंक में मैनेजर है। आज ही उसकी मम्मी ने बताया मुझे। मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ सुन कर। मैं तो यही समझती थी कि वह कॉलेज जाती होगी पढ़ने। देखने में तो बिलकुल छोटी सी दिखती है,’’
मां ने बड़े उत्साह से बताया, पर मेरी तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना पा कर पूछ बैठीं, ‘‘क्या हुआ। तुझे आश्चर्य नहीं हो रहा
सुन कर?’’

‘‘मैं मिल चुका हूं उससे बैंक में। मुझे पता है कि वह बैंक मैनेजर है। अविनाश के साथ लोन के सिलसिले में गया था उसके बैंक में।’’

‘‘तो तूने हमें क्यों नहीं बतायी यह बात?’’ मम्मी नाराज होते हुए बोलीं।

‘‘अरे, 2-3 दिन पहले ही तो मिला हूं। काम का इतना प्रेशर है आजकल कि आप लोगों को बताना याद ही नहीं रहा,’’ मैं अपनी खिसियाहट छिपाने का प्रयास कर रहा था, क्योंकि वह मुझसे बेहतर है, इस सचाई को मैं अभी तक ठीक से पचा नहीं पाया था।

‘‘चलो गनीमत है, अब कम से कम उसे अपने घर में आने देने लायक तो समझेगा तू। ख्वाहमख्वाह इतनी अच्छी लड़की के लिए अपने मन में इमेज खराब किए बैठा था।’’

‘‘पूछ लो इससे कि अगर यह लड़की इसे इस घर में आने लायक लगे, तो हम गाजे-बाजे के साथ ले आएं उसे,’’ पापा हमेशा की तरह मजाकिया मूड में थे।

पर मैं हर बार की तरह इस बार पापा के मजाक का कोई करारा जवाब नहीं दे पाया। मेरे अंदर आए परिवर्तन के अहसास ने मुझे खामोश रहने दिया था। बैंक में हुई मुलाकात के बाद उर्वशी मेरे वजूद पर छाने लगी थी। लाख कोशिशों के बाद भी मैं उस पर से अपना ध्यान नहीं हटा पा रहा था। उसके गर्मजोशीभरे हथेलियों के स्पर्श को मैं बार-बार अपनी मुट्ठी बंद करके महसूस करने की कोशिश करने लगा था। मुझे ऐसा लगने लगा था कि मैं जितना ही उस पर से ध्यान हटाने की कोशिश कर रहा हूं, वह उतना ही मुझे अपनी ओर खींच रही है। उसका आत्मविश्वास से लबरेज चेहरा। हमसे बातें करते-करते लगातार फाइलें साइन करना, लगातार बज रहे एक के बाद एक फोन
को रिसीव करना और सधे शब्दों में कही उसकी बातें। बस अब वही सब कुछ दिन-रात मेरी आंखों के सामने घूमा करता था। मुझे महसूस होने लगा था कि शायद यही वह ‘ब्यूटी विद ब्रेन’ है, जिससे मिलाने के लिए भगवान ने मुझे इलाहाबाद से कानपुर भेजा है।

‘‘अनिरुद्ध, अब तो तुझे उर्वशी और उसके परिवार वालों से कोई परेशानी नहीं है ना, तो कल संडे को उसे और उसकी मम्मी को लंच पर बुला लेते हैं। बहुत मदद की है उन लोगों ने हमारी। एक छोटी सी थैंक्स गिविंग पार्टी तो देनी ही पड़ेगी उन लोगों को,’’ मम्मी ने कहा।

‘‘ठीक है, बुला लीजिए,’’ कह कर मैंने अपनी सहर्ष सहमति दे दी।

किसी लड़की के कितने रूप हो सकते हैं, यह उस दिन उर्वशी को देख कर मैं सोच रहा था। आज ना ही वह पहले दिनवाली अल्हड़, बेफिक्र उच्छृंखल लड़की थी और ना ही बैंक मैनेजर की कुर्सी पर बैठी चुस्त, सजग और कर्मठ अधिकारी।

जींस और गुलाबी कुरती पहने एक घरेलू और जिम्मेदार बेटी सी मम्मी के साथ किचन में लगी उर्वशी मुझे मेरे सपनों में सजी जीवनसंगिनी लग रही थी। कैसा जादू था इसका कि इसने चंद दिनों में ही मेरे अहंकार को छिन्नभिन्न कर पाषाण से इंसान बना दिया मुझे। मेरे सपने मूर्त रूप लेने लगे। मैं अपने आपको तौल रहा था कि इसे आई लव यू कहने की हिम्मत कर पाऊंगा कभी। घर में उसकी उपस्थिति से मैं बहुत नर्वस हो रहा था।

मदद के बहाने उर्वशी के पास जाना मेरे स्वभाव के बिलकुल प्रतिकूल था, पर इससे पहले प्यार की खूबसूरत अनुभूति भी तो नहीं हुई थी मुझे। मैं अपने आपको रोक नहीं पाया। किचन से प्लेट ले कर आती ‘उस अजीब लड़की’ के हाथ से प्लेट मैंने आगे बढ़ कर ले ली और डाइनिंग टेबल पर लगाने लगा। मुझे उसका सान्निध्य अच्छा लग रहा था।

‘‘भाभी जी, आपकी बेटी बहुत प्यारी और होनहार है। इसने तो पहले ही दिन अपनी प्यारी बातों से हम सबका दिल जीत लिया था,’’ खाना शुरू होते ही मम्मी ने बातों का सिलसिला शुरू किया, ‘‘अब तो आप लड़का भी देख रही होंगी इसकी शादी के लिए?’’

मम्मी के मुंह से उर्वशी की शादी की बात सुन कर अचानक से गला सूख गया मेरा। गिलास उठा कर दो घूंट पानी पी कर मैंने अपना गला तर किया।

‘‘उर्वशी मेरी बेटी नहीं, बहू है। मेरे इकलौते बेटे क्षितिज की विधवा।’’

मेरे हाथ से गिलास झटके से छूट कर नीचे गिर गया।

‘‘ओह !’’ मम्मी-पापा के मुंह से एक साथ निकला।

पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा कि सुन कर मम्मी को भी अपने हाथ से कुछ छूटता सा लगा।

‘‘आई एम सॉरी भाभी जी। दरअसल उर्वशी को देख कर हमें कभी ऐसा लगा ही नहीं। हम तो आज तक इसे आपकी बेटी ही समझते आए हैं,’’ मम्मी भी उर्वशी की सचाई जान कर हतप्रभ थीं।

थोड़ी देर पहले तक का औपचारिक खुशी का वातावरण गमगीन हो गया। उर्वशी की सास की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी और उधर उर्वशी अपनी कुर्सी पर तटस्थ बैठी चम्मच से पुलाव के दानों को इधर से उधर करने लगी।

‘‘पागल है यह। किसी को अहसास नहीं होने देना चाहती है अपने अंदर के दर्द का। वह गजल सुनी है ना आप लोगों ने - तुम इतना जो मुस्करा रहे हो, क्या गम गम है जिसको छिपा रहे हो... सोचती है बिना मतलब हंसती-हंसाती रहेगी, तो इसके अंदर के दर्द तक कोई झांक नहीं पाएगा। मैं अपने कलेजे पर पत्थर रख कर समझाती रहती हूं इसे कि अपने बारे में सोच। पहाड़ सी जिंदगी पड़ी है आगे। शादी कर ले दूसरी, पर इसे किसी की सुननी हो तब ना।’’

‘‘वह तो बेटा हो कर छोड़ कर चला गया, पर यह बहू हो कर नहीं जा रही है मुझे छोड़ कर। मेरे लिए अपनी जिंदगी बर्बाद कर रही है। कहती है क्या कमी है मेरी जिंदगी में। सब कुछ तो है मेरे पास सिवाय क्षितिज के। क्षितिज आपका प्रतिरूप थे। आपके रूप में क्षितिज को देखती रहती हूं। आप खुश होती हैं, तो ऐसा लगता है क्षितिज मुस्करा रहे हैं। क्षितिज की मुस्कराहट से कैसे दूर जा सकती हूं मैं।

‘‘जीने के लिए दोहरा चरित्र ओढ़ लिया है मेरी बच्ची ने। अंदर गम का दरिया बह रहा है, पर ऊपर से ऐसा दिखाती है जैसे इससे ज्यादा खुश, मस्त, बेफिक्र कोई और है ही नहीं। मुझे खुश रखने के लिए ना जाने क्या-क्या यत्न करती रहती है। इसे लगता है कि मुझे कुछ समझ में नहीं आता है, पर समझ कर भी मैं अकेले में आंसू बहाने के अलावा और कुछ नहीं कर पा रही हूं अपनी फूल सी बहू के लिए।’’

आंसुअों में लिपटे उनके एक-एक शब्द मेरे कानों में गरम सीसा उड़ेल रहे थे। मेरा वहां और बैठे रह पाना मुश्किल हो रहा था। आंखें आंसुओं को अंदर ही रोकने के प्रयास में लाल हो गयी थीं। मैं महसूस कर रहा था कि जैसे मुझे कदम-कदम पर मात देने के लिए इस अजीब लड़की ने मेरे जीवन में प्रवेश किया है।

मेरा दम तेजी से घुटने लगा था। ‘‘एक्सक्यूज मी’’ कहता हुआ मैं वहां से उठ कर बाहर खुली हवा में निकल आया। अंदर रोके हुए आंसू आ कर आंखों में इकट्ठे हो गए। पहली बार किसी लड़की के लिए दिल में प्यार जैसी कोमल भावना का अहसास किया था मैंने। वह खूबसूरत अहसास अभी तन-मन में अपनी सुगंध बिखेरने को बढ़ा ही था कि ऐसी क्रूर सचाई का थपेड़ा पड़ गया। अब मेरे आंसू मेरी आज्ञा मानने को तैयार नहीं थे। मुझे उन्हें छिपाने का रास्ता चाहिए था, क्योंकि उनका बहना भी बहुत जरूरी था।

बाहर तेज बारिश हो रही थी। शायद बादल मेरी पीड़ा को कम करने की कोशिश कर रहे थे। बारिश की बूंदों में आंसुओं को बेखौफ बहने की इजाजत दे कर मैं लक्ष्यविहीन सा सड़क पर चलने लगा।