Tuesday 23 February 2021 04:05 PM IST : By Deepa Pandey

वो कहां गयी

दादी की परी कथाएं सुन कर मीरा चमत्कारों की दुनिया से नाता जोड़ बैठी। बंद कमरे से अचानक वह क्यों और कहां गायब हो गयी?

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आज फिर सुबह से ही घर में उठापटक शुरू हो गयी थी। मीरा की सास उसे गुरु जी के पसंदीदा पकवानाें की सूची पकड़ा चुकी थीं। मीरा सोच में पड़ गयी कि अब शाम से ही गुरु जी बैठक में विराजमान हाे जाएंगे। पहले उनकी आरती का कार्यक्रम, उनकी चरणरज पीना, फिर सबकी कुंडली के आधार पर ग्रह दोषों की शांति के लिए मुर्गे, कबूतर की बलि देना और हवन कुंड में सामग्री डाल-डाल कर पूरे घर में धुआं भर देना, उफ्फ, कितनी कोफ्त होती है उसे। पता नहीं तांत्रिक गुरु कबसे इस परिवार से जुड़ा हुआ है। उसे ना तो गुरु के विषय में कुछ पूछने का मन करता है, ना ही उसमें कोई श्रद्धा उत्पन्न होती है। उसके हाथ पकवान बनाने को यंत्रवत चल रहे थे। मन उलझा हुआ था पुरानी यादाें में।
‘‘दादी, कोई कहानी सुनाओ ना,’’ मीरा दादी से बोली।
‘‘राजा रानी की, चोर सिपाही की, राधा-कृष्ण की या मीराबाई की,’’ दादी ने मीरा के लंबे घुंघराले बालाें में हाथ फिराते हुए पूछा।
मीरा दादी की लाड़ली थी। उनके सिवा मीरा किसी की बात ही नहीं सुनती। राजकुमार, चमत्कार, परी कथाएं और पौराणिक गाथाओं को सुन-सुन कर मीरा अपने को वर्तमान से जोड़ ही ना पाती, हमेशा उसे किसी चमत्कार की प्रतीक्षा रहती।
‘‘दादी, मीराबाई कहां चली गयी थीं?’’ वह अकसर पूछ बैठती। 
‘‘बेटी, वे श्रीकृष्ण की मूर्ति में समा गयीं,’’ दादी उसे अपनी गोद में बिठा कर समझातीं।
‘‘दादी, मैं भी तो मीरा हूं। क्या मैं भी गायब हो सकती हूं?’’
‘‘तुझे तो सुंदर सा राजकुमार अपने महल में ले जाएगा, फिर तू हमारे घर से गायब हो जाएगी,’’ दादी हंसतीं।
मीरा का रिश्ता दादी ही अपनी दूर की रिश्तेदारी से ढूंढ़ कर लायी थी। शहर का जानामाना कपड़ा कारोबारी परिवार, विदेश से एमबीए की डिग्री ले कर लौटा दामाद, बाकी अब कुछ अौर देखने-सुनने की गुंजाइश कहां थी। मीरा को उन लोगों ने पहले भी कई पारिवारिक समारोहों में देखा था। तुरंत सगाई हो गयी। सगाई के बाद वह कॉलेज गयी, तो कॉलेज के गेट में ही अनिरुद्ध ने उसका रास्ता रोक लिया, ‘‘सगाई में तो बुलाया नहीं, अब शादी में नाम जरूर याद रखना।’’
‘‘पता नहीं, शादी करके भी क्या होगा। मैं बहुत उलझन में हूं।’’
‘‘तो शादी तुम्हारी मर्जी से नहीं हो रही है।’’
‘‘नहीं, मेरी ताे किसी ने राय लेने की जरूरत नहीं समझी। बिजनेस डील की तरह यह भी तय हो गयी।’’
‘‘2 साल ही रुक जाती, तो तुम्हारी और मेरी दोनों की एमबीए की डिग्री कंप्लीट हाे जाती। हम अपनी गृहस्थी चला ही लेते। मेरे घर में मेरी जिम्मेदारी सिर्फ मेरी मां हैं। तुम थोड़ा सा भी साथ दो, तो इस साल डिग्री मिल ही जाएगी। एक साल के अंदर सेटल हो ही जाता।’’
‘‘अब मेरे घरवालों की प्रतिष्ठा दांव पर लग गयी है। शादी तो हो कर ही रहेगी। तुम अगर 2 साल बाद भी मुझे स्वीकार करने को तैयार हो, तो बोलो। प्यार में तो सोहनी-महिवाल को ही देख लो, वह तो अपनी प्रेमिका से शादी के बाद भी प्यार करता था।’’
‘‘यह असल जिंदगी है, किस्से-कहानियां नहीं।’’
‘‘असल जिंदगी धन-दौलत से ही चलती है, प्रेम की मीठी लफ्फाजी से नहीं।’’
‘‘ओह, उसकी दौलत के आगे झुक गयी हो, यह कहो।’’
‘‘नहीं, सच तो यह है कि तुम मुझे अभी स्वीकार नहीं कर सकते अौर बाद में शादीशुदा प्रेमिका भी नहीं चलेगी। मैं तुम्हारे लिए कब तक कुंआरी बैठी रहूं? कब तुम्हारी नौकरी लगेगी? कब सेटल होंगे क्या पता?’’ इतना कह कर मीरा तेजी से चल कर आगे निकल गयी। अनिरुद्ध वहीं ठिठक कर रह गया।
कॉलेज गेट से निकल मीरा कार में सवार हो गयी, ‘‘मीरा मत जाओ, मैं तुम बिन रह नहीं सकता, रुक जाओ मीरा, मीरा...’’
लेकिन मीरा नहीं रुकी, उसकी अांखाें के कोर गीले हो उठे। विवाह पश्चात डिग्री पूरी होने तक मीरा व अनिरुद्ध की कॉलेज में मुलाकात हो ही जाती थी। अब सालभर से वह भी बंद हो गया। अनिरुद्ध नौकरी की तलाश में दिल्ली चला गया अौर मीरा लखनऊ में ही रह गयी।
नौकरी की जगह उसे घर की चारदीवारी ही मिली अौर मिला दकियानूसी परिवार। अब तो मेहमानों की आवभगत अौर सास-ससुर, 2 छोटे देवरों के नखरे, इन्हीं को पूरा करते दिन बीत जाता। अपने लिए कुछ पल जीने का मौका ही ना मिलता। रही-सही कसर गुरु जी के आगमन में पूरी हो जाती। तीसरे-चौथे महीने में गुरु जी आना तय रहता। आते भी तो अमावस्या को अौर अपनी तांत्रिक क्रियाअों से सबको उलझा कर रख देते।
शादी को डेढ़ साल हो गए हैं। इस बार मीरा की सूनी गोद को जल्दी भरने के लिए 2 निरीह कबूतरों को गुरु जी की तांत्रिक क्रियाअों के लिए लाया गया है। मीरा का मन घृणा से भरा हुआ हैं, मगर अपने दिल की बात किससे कहे। दादी अौर अनिरुद्ध दो ही तो उसके जीवन के सच्चे साथी हैं। अनिरुद्ध शहर में नहीं है अौर दादी बीमारी से बिस्तर पकड़ चुकी हैं। मीरा अपने पति अंकुश के पास जा कर बोली, ‘‘विदेश से पढ़ कर आए हो आप, लेकिन अभी भी इन्हीं ढकोसलों में उलझे हो।’’
‘‘तुम्हें तंत्र की शक्ति नहीं पता। बचपन में मेरे गांव में मेरे ऊपर पीपल का भूत लग गया था। मैं महीनेभर बुखार में तपता रहा, कोई इलाज काम ना आया। फिर गुरु जी ने ही काले मुर्गे की बलि दे कर मेरी जान बचायी थी। आइंदा मुझसे ऐसी बातें ना करना।’’ मीरा गुस्से में फनफना कर रह गयी। उसे अपने पति की कमी पता थी। वह जानती थी कि अपनी कमी छिपाने के लिए वह चीख-पुकार मचा रहा है। कुछ देर विचार करने के बाद उसने गुरु जी से सलाह लेना उचित समझा।
शाम को गुरु जी के वंदन पूजन के पश्चात जब उन्हें फलाहार परोसा गया, तो मीरा ने एकांत देख कर गुरु जी के निकट जाना उचित समझा।
‘‘कुछ कहना है तुम्हें?’’ मीरा की मुखमुद्रा को देख कर अनुभवी गुरु जी समझ गए थे।
गुरु जी भी मीरा के सौंदर्य से अभिभूत थे। वे स्वयं यही चाहते थे कि मीरा उनके इशारों पर नाचने लगे, तो उन्हें भी उसके यौवन का रसपान करने का मौका मिल जाएगा। मगर मीरा तो उनके पास फटकती ही नहीं है। आज उसी की गोद भरने के लिए उन्होंने जानबूझ कर आयोजन करवाया है, ताकि मीरा उनकी पकड़ में आ सके। अनुष्ठान आरंभ होने से पहले ही मीरा का एकांत में उनके सम्मुख आना उन्हें चौंका गया।
‘‘आप तो अंकुश का सच जानते हैं ना। जहां से आधुनिक चिकित्सा की सीमा समाप्त होती है वहीं से लोग तंत्र मंत्र की अोर उम्मीद से देखने लगते हैं। इसी बात का फायदा उठा कर अापने इस परिवार में अपनी अच्छी पैठ बना ली है। इन तांत्रिक क्रियाअों से अंकुश का कुछ भला नहीं हो रहा, ना ही भविष्य में होगा,’’ मीरा के माथे में पसीने की बूंदें चमकने लगी।
गुरु जी उसकी बातों में खो से गए। मीरा के लरजते होंठ, तेजी से घूमती पुतलियां, माथे पर चमकता पसीना, सिर से ढलकते पल्ले को संभालती नाजुक उंगलियां ! गुरु जी मंत्रमुग्ध से बैठे रह गए। वे सोचने लगे, यह खूबसूरत ही नहीं, कुशाग्र बुद्धि की भी है। कुछ देर पश्चात बोले, ‘‘तुम क्या चाहती हो?’’
‘‘मुझे ये निर्दोष कबूतर दे दीजिए, मैं इन्हें खुले गगन में उड़ाना चाहती हूं,’’ मीरा की नजर कोने में पिंजरे में बंद सफेद कबूतरों के जोड़े पर थी। गुरु जी उसका आशय समझ गए कि वह तांत्रिक क्रिया बंद कराना चाहती है।
‘‘हमारा यहां आना तुम्हें पसंद नहीं।’’
‘‘ऐसी बात नहीं है गुरु जी, आप यहां हर दूसरे दिन भी आएं, तो मुझे क्या आपत्ति होगी। मगर इन बेजबान पक्षियों की निरुद्देश्य हत्या बर्दाश्त नहीं होती। आप भी जानते हैं इन सब क्रियाअों से अंकुश का भला नहीं होनेवाला।’’
गुरु जी सोच में पड़ गए कि छोकरी बहुत तेज है। इसे धीरे-धीरे ही साधना होगा। प्रत्यक्ष में बोले, ‘‘आज पहली बार तुम मुझसे कुछ मांग रही हो, लो मैंने इन कबूतरों को प्राणदान दिए। यह बात तुम्हारे अौर मेरे बीच ही सीमित रहेगी। आज रात्रि की पूजा अपने नियत समय से होगी।’’ मीरा के नेत्र खुशी से छलक आए, वह श्रद्धावश उनके चरणों में झुक गयी। पलक झपकते ही उसने कबूतर कमरे की बालकनी से खुले आकाश में उड़ा दिए। गुरु जी ने पिंजरे को सफेद वस्त्र से ढक दिया।
गुरु जी को मीरा की कमजोरी पता चल गयी थी अौर मीरा को गुरु जी की। गुरु जी काले रंग के, साधारण शक्ल-सूरतवाले, मगर कसे हुए शरीर के 50 वर्षीय पुरुष थे, जो अपनी किशोरावस्था में पिता की मार से बचने के लिए साधुअों के डेरे में शरण ले बैठे। कुछ वर्षों के पश्चात वहां की एकरस दिनचर्या से  ऊब शमशान में घूमते अघोरियों से जा मिले। उन्हीं के बीच रह कर तंत्र-मंत्र, बलि आदि क्रियाअों को सीख कर गुरु जी बन बैठे थे। जिनको उनके उल्टे-सीधे इलाज से फायदा हुआ, वे लोग अब उनको सिर-माथे पर बैठा कर रखते हैं। जिनका फायदा नहीं हुआ वे अपने भाग्य को कोस कर रह जाते हैं। गुरु जी को दोनों सूरतों में फायदा ही था।
आज पूजा संपन्न हुए 2 दिन बीत गए थे। मीरा का मन उद्विग्न हो रहा था। ‘यह दुनिया कितनी प्रपंची है। इससे तो मेरे बचपन के दिन ही अच्छे थे या अनिरुद्ध के संग बिताए पल। मैं तो काल्पनिक दुनिया में विचर रही थी कि विवाह पश्चात पति संग मेरे दिन सोने के अौर रातें चांदी की होंगी, मगर हकीकत में तो कांटेभरे दिन-रात हैं। अो अनिरुद्ध तुम कहां हो...’ मीरा मन ही मन उसे याद कर सिसक उठी।
अचानक उसका मोबाइल बज उठा, ‘‘तुम ठीक तो हो ना।’’
‘‘अनिरुद्ध !’’ उसका गला भर आया। शादी के बाद जब भी कॉलेज में अनिरुद्ध से सामना होता वह यही पूछता, ‘‘तुम ठीक तो हो ना?’’ वह पलट कर कहती, ‘‘अच्छी-भली खड़ी हूं तुम्हारे सामने। ‘‘अौर वह कहता, ‘‘बस यही जानना था कि तुम राजी-खुशी हो।’’ छह महीने से अनिरुद्ध की कोई खबर नहीं थी अब अचानक से फोन। ‘‘कुछ तो बोलो। तुम ठीक तो हो ना?’’
‘‘मेरी छोड़ो तुम सुनाअो, कैसे हो।’’
‘‘मुझे बंगलुरु में एक एमएनसी में जॉब मिल गयी है। यहां आए 6 महीने हो गए हैं। मैंने लखनऊ छोड़ दिया है। घर भी बेच दिया है अौर मां को अपने साथ यही ले आया हूं। जल्द ही लोन ले कर फ्लैट लेने की सोच रहा हूं। मैं अब तुम्हारे सामने नहीं आना चाहता हूं। तुम्हें देख कर पुराने दिन याद आएंगे, जो अब हम दोनों के लिए ठीक नहीं है।
‘‘शायद ठीक ही कहते हो, अब तुम्हारे अौर मेरे रास्ते अलग-अलग हैं। मेरी फिक्र ना करना,’’ कह कर मीरा ने फोन रख दिया। अब इस मोर्चे से उसे खुद ही जूझना होगा उसने सोचा।
अब तो गुरु जी की उसके मायके में भी गुणगान व सेवा होने लगी थी। उसने दादी से दबे शब्दों में अंकुश की कमी को ले कर तलाक लेने की बात कही, तो दादी झट उसके मुंह पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘पति के लिए एेसे शब्द नहीं कहते मीरा, पति तो परमेश्वर होता है।’’
‘‘दादी आप ही कहती थीं ना कि मीरा ने परमेश्वर को ही पति मान लिया था, तो ठीक है। मैं भी तो मीरा हूं आज से मैं भी परमेश्वर से दिल लगा लूंगी। जिंदगी कट ही जाएगी।’’
‘‘दादी, अपनी पोती की तरफ से बेफिक्र रहना, आपको मेरे ऊपर नाज ही होगा। कभी नीचा ना देखना पड़ेगा,’’ दादी के जुड़े हुए हाथों पर अपना सिर रख कर मीरा बिलख उठी। दादी देर तक उसके बाल सहलाती रही।
गुरु जी बाराबंकी के अपने अाश्रम में लौट गए थे, यहीं से तो उन्होंने अपने अोझागिरी की शुरुआत की थी। दीनदयाल अपने बीमार बेटे अंकुश को तब उनके दरवाजे ले कर आए थे, जब वे लखनऊ से कच्चा माल ला कर कारीगरों को सौंपते थे अौर चिकन की कढ़ाई से सजे वस्त्र वापस दुकानों में दे आते थे। आज वे बड़े कपड़ा व्यापारी में गिने जाते हैं। वे अपनी हर तरक्की का श्रेय गुरु जी को देते हैं। दीनदयाल की तरह 50-60 अन्य अंधभक्त चेले अौर भी हैं, जो अपनी गाढ़ी कमाई उनके अाश्रमों में लुटाते हैं। छोटे-मोटे चेलों को वे गिनती में रखते ही नहीं हैं। गुरु जी अपने नरम मखमली बिस्तर में लेट कर मीरा के ध्यान में मग्न हो गए।
‘‘तुम ठीक तो हो ना?’’ अनिरुद्ध ने फोन किया।
‘‘अब मैं बिलकुल ठीक हूं। मुझे समझ आ गया है कि इस धरती पर मेरा कोई मददगार नहीं है इसीलिए मैंने अब ऊपरवाले पर सब कुछ छोड़ दिया है। अब मेरा भाग्य मुझे जहां ले जाए, मैं किसी से कोई शिकायत नहीं करूंगी।’’
‘‘इतनी निराशा ठीक नहीं, कर्मठ बनो।’’
‘‘अब कोई उपदेश मुझ पर असर नहीं करता, अचंभे में मत आना यदि कल को मैं तुम्हें किसी आश्रम में गेरुए वस्त्र धारण किए हुए मिलूं।’’
‘‘मीरा !’’ अनिरुद्ध तड़प उठा, ‘‘तुम अपना सीवी मुझे वॉट्सएप कर दो, मैं अपने अॉफिस में तुम्हारी बात कर देखता हूं।’’
‘‘चलो तुम भी कोशिश कर देख लो, मगर मुझे शहर छोड़ कर दूसरी जगह जाना तो दूर की बात है, घर अौर शोरूम के अलावा अन्य जगह जाना भी मना है।’’
‘‘तुम सीवी भेजो बाकी बाद में सोचेंगे।’’
नियत समय पर गुरु जी का अासन सज गया। अंकुश उनके नजदीक बैठा ना जाने कौन सी जड़ी-बूटी लेने के तरीके को देर तक समझता रहा। मीरा झांक कर लौट जाती। जैसे ही गुरु जी के कक्ष में एकांत हुअा, वह गुरु जी के चरण स्पर्श कर बैठ गयी।
‘‘गुरु जी, मैं एक साल से लगातार संन्यासी सा जीवन जी रही हूं व्रत, उपवास, ध्यान ! क्या फायदा मिला मुझे!’’
‘‘तुम्हारे चेहरे में एक तेज उतर आया है, जल्द ही लोग तुझमें देवी के दर्शन करने लगेंगे।’’
‘‘मुझे मोक्ष चाहिए, मुझे युधििष्ठर की तरह सशरीर स्वर्ग जाना है या फिर मीरा की तरह अंतर्ध्यान होना है। मेरा जन्म भले ही साधारण तरीके से हुअा हो, मगर मुझे मृत्यु साधारण नहीं चाहिए।’’
मीरा की बातें सुन कर गुरु जी की बांछें खिल गयीं। अब तो यह युवती पूरी तरह उनके प्रभाव में आ गयी है। जल्द ही उनकी बांहों में होगी। वे इसे यहां से अपने साथ ले कर रफूचक्कर हो जाएंगे। इसके लिए योजनानुसार कार्य करना होगा।
‘‘इसके लिए भी तुम्हें साधना करनी होगी। मुझे तुम्हारे अंदर दिव्य आत्मा के दर्शन हो रहे हैं, निसंदेह तुम अंतर्ध्यान होने की क्षमता रखती हो,’’ गुरु जी की बातें सुन कर मीरा मुस्करा उठी।
उसी रात अनुष्ठान के बाद गुरु जी ने अपने कक्ष की गद्दी खाली कर मीरा को बैठा दिया, ‘आज से यह मीरा की साधना स्थली है। मैं 3 माह पश्चात पुनः आकर निर्णय करूंगा कि इसे गृहस्थ आश्रम में लौटना है या संन्यास अाश्रम की अोर पग बढ़ाना है,’’ गुरु जी का निर्णय सुन कर पूरा परिवार सकते में अा गया। मगर गुरु जी के अागे कुछ पूछने की हिम्मत किसी में ना थी।
मीरा अब खुश रहने लगी थी। उसे चौबीसों घंटे का एकांत मिल गया था। मंदिर जाने के नाम पर गाड़ी से अपने मायके भी घूम आती। अंकुश उसे खुश देख कर अपनी मुटि्ठयां भींच कर रह जाता। वह उसे देख कर अपने कक्ष को बंद कर लेती। नियत तिथि को गुरु जी पधारे। सभी को उनके निर्णय का बेसब्री से इंतजार था। गुरु जी ने कक्ष के बाहरी हिस्से को फूलमालाअों से सजवा दिया फिर कक्ष में हवन करवाया। इसके पश्चात मीरा को 2 थाल में सजा कर वस्त्र भेंट किए गए। एक थाल में लाल जोड़ा दूसरे में गेरुए वस्त्र थे।
‘‘मीरा, तुम्हारे हृदय अौर अात्मा दोनों ही शुद्ध हो चुके हैं, तुम्हारा निर्णय ही सर्वोपरि रहेगा। जिस राह पर चलना हो, उसी के अनुरूप कल स्नान के पश्चात वस्त्र धारण कर लेना। कोई भी कल तक तुमसे कोई वार्तालाप नहीं कर सकता,’’ यह कह कर गुरु जी अपने अाश्रम को लौट गए। उन्होंने चालाकी से सारी बात मीरा के ऊपर डाल दी। गुरु जी के जाने के बाद सभी अपने-अपने कक्ष में सोने चले गए।
 सुबह 10 बजे तक भी जब मीरा कक्ष से बाहर ना निकली, तो घरवालों ने गुरु जी को फोन कर लिया। गुरु जी ने ही तो सभी को मीरा से वार्तालाप ना करने की सलाह दी थी।
गुरु जी ने मीरा को पुकारा। जब अंदर से कोई प्रतिक्रिया ना हुई, तो उन्होंने दरवाजे को धकेल दिया। अंदर लाल जोड़े की थाली ज्यों की त्यों रखी हुई थी, मगर दूसरी थाली के वस्त्र अपनी जगह में नहीं थे, बल्कि वे हवनकुंड के समीप रखे त्रिशूल में टंगे हुए थे। गुरु जी को पसीना आ गया। यह दृश्य तो उनकी योजना में शामिल नहीं था। मीरा कहां गयी? क्या घरवालों ने मार कर कहीं फेंक तो नहीं दिया और मुझे फंसाने को बुला लिया। अब क्या करें? लगता है यह मामला घरेलू तरीके से हल नहीं किया, तो जरूर मुझे ही जेल जाना पड़ेगा। कुछ देर ऊहापोह की स्थिति में रहने के पश्चात वे ध्यान की मुद्रा में बैठ गए। दीनदयाल के घर के अंदर हड़कंप मचा हुआ था। घर का एक-एक कोना छान मारा गया। गार्ड, पड़ोसी सभी को पूछ लिया गया। मगर किसी ने मीरा को कहीं आते-जाते नहीं देखा। फिर वह कहां गयी। घर में पड़ोसी आने लगे थे। गुरु जी को स्थिति तुरंत संभालनी थी, तनिक असावधानी से उनका बना-बनाया साम्राज्य डोल सकता था।

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गुरु जी ने अपने नेत्र खोले अौर गंभीर मुद्रा में बोले, ‘‘मैंने पहले ही कहा था कि वह पवित्र आत्मा है और महीनों के शुद्धिकरण से वह इतनी निर्मल हो गयी कि उसने अपनी इच्छाशक्ति के द्वारा अपने को अंतर्ध्यान कर लिया। वह इस त्रिशूल में समा गयी है।’’
‘‘मीरा मां की जय हो,’’ दीनदयाल ने तुरंत उद्घोष किया। वे भी मन ही मन डरे हुए थे कहीं मीरा के घरवालाें ने उनके ऊपर बहू को सताने और गायब करने का आरोप लगा दिया, तो पूरा परिवार जेल जाएगा। उसके प्रत्युत्तर में पूरा परिवार उद्घोष करने लगा। थोड़ी देर में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति मीरा की जय बोल कर त्रिशूल को प्रणाम करता और हवनकुंड की राख माथे पर लगा कर खुद को धन्य मानने लगा। गुरु जी ने राहत की सांस ली। वे बच गए थे। थोड़ी देर में मीरा के मायके से उसके मम्मी-पापा अौर भाई पहुंच गए। ऐसे जयजयकार के बीच उनको भी कुछ समझ ना आया। वे सोचने लगे, ना जाने कहां भाग गयी।’ हमारी बदनामी होने से तो अच्छा है। हम भी स्वीकार कर लें कि वह अंतर्ध्यान हो गयी। वे भी त्रिशूल को प्रणाम कर हवन कुंड की राख को पुडि़या में ले कर वापस लौट गए।
‘‘ये लो अपनी लाड़ली पोती के हवनकुंड की राख,’’ घर पहुंच कर मीरा की दादी को पुडि़या सौंपते हुए उसके पिता जी ने कहा।
‘दादी, आपको मेरे ऊपर नाज ही होगा, कभी नीचा ना देखना पड़ेगा,’ दादी के कानाें में मीरा के स्वर गूंज उठे। वे पुडि़या को मुट्ठी में दबा कर फफक पड़ीं। एक दादी ही थी, जो उसके जाने की बात सुन कर बिलख रही थी, बाकी सब अपनी दिनचर्या में वापस डूब गए।
‘‘तुम ठीक तो हो ना,’’ बंगलुरु एअरपोर्ट पर मीरा को िरसीव करने अाए अनिरुद्ध ने मीरा से पूछा।
‘‘अच्छी-भली तो हूं तुम्हारे सामने,’’ मीरा िखलखिलायी।
‘‘लखनऊ में तहलका मचा है मीरा मां का !’’ अनिरुद्ध ने छेड़ा।
‘‘मुझे बचपन से चमत्कार आकर्षित करते रहे हैं, इसीलिए मैं खुद सबके लिए चमत्कार बन गयी हूं। कुछ समय पश्चात लोग इस घटना को भूल जाएंगे फिर तलाक दायर करूंगी। यह बताअो मेरा इंटरव्यू कब है?’’
‘‘कल शाम को, घर चलो मां भी चमत्कारी मीरा से मिलने को उत्सुक है।’’
‘‘तुमने उन्हें सब बता दिया।’’
‘‘हां, अब जिंदगी की नयी शुरुआत सच से करो, फिर कभी गायब ना हो जाना।’’
‘‘हां, फिर तुम भी कहोगे वो कहां गयी,’’ मीरा अपने खुले केशों को संवारती, अपनी श्वेत दंतपंक्ति की झलक दिखाती खिलखिला उठी।