Monday 08 March 2021 02:46 PM IST : By Nisha Sinha

मिनोती देसाईः जुनून ने बनाया क्रिकेटर

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क्रिकेटर विराट कोहली के घर बिटिया के जन्म होने के बाद सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाला। पोस्ट में टीम इंडिया के क्रिकेट प्लेअर्स के नाम थे, जिनके घर बिटिया का जन्म हुआ था। इसे उन्होंने फ्यूचर वुमन क्रिकेट टीम नाम दिया। यह मजेदार पोस्ट आज सामान्य लग रही है। वजह है इंडियन वुमंस क्रिकेट टीम के ऐतिहासिक कारनामे। मिथाली राज, झूलन गोस्वामी, हरमनप्रीत कौर, स्मृति मंदाना समेत कई भारतीय महिला क्रिकेटर्स ने यह नजरिया ही बदल दिया कि क्रिकेट पुरुषों का खेल है। लॉर्ड्स में खेल चुकी पूर्व महिला क्रिकेटर मिनोती देसाई शुरुआती चुनौतियों, महिला क्रिकेटर्स और भारतीय महिलाओं की स्थिति पर बहुत कुछ बताती हैं-

क्रिकेट का कीड़ा मिनोती को 5 साल की उम्र में काट चुका था। उस समय टीवी कॉमन नहीं था। तब उनकी मां रेडियो में कमेंट्री सुनती थीं। यह 70 के दशक के शुरुआती दिनों की बात है। घर के पास ही स्टेडियम था, जहां कभी रणजी का मैच होता, तो हम मम्मी के साथ खाने का डिब्बा पैक करके वहां क्रिकेट एंजॉय करने जाते। मां को क्रिकेट को ले कर बहुत जुनून था। आज 80 साल की उम्र में भी वे मैन ऑफ द मैच घोषित किए जाने तक क्रिकेट देखती हैं। बचपन में भाई मुझे अपने और उसके दोस्तों के साथ क्रिकेट नहीं खेलाता था। दूसरे बच्चों के साथ मैंने पहले प्लास्टिक बॉल फिर टेनिस बॉल से खेलना शुरू किया। भाई घर में नहीं होता, तो उसका बैट ले कर मैं रफूचक्कर हो जाती। मेरे पेरेंट्स ने क्रिकेट को ले कर कभी टोकाटाकी नहीं की। दोनों प्रोग्रेसिव सोच रखते थे। शुुरुआत में कॉलोनी के लड़के मुझे खेल में रखने से डरते, क्योंकि उनको डर लगता था कि मुझे चोट ना लग जाए। सबने देखा कि मैं उनकी तरह ही शॉट मारती हूं, तो खुशी-खुशी टीम में शामिल कर लिया। मुझे रवि शास्त्री का स्टाइल अच्छा लगता था। टैलेंटेंड होने के साथ-साथ वे दिमागी क्रिकेटर भी रहे हैं। बॉलिंग करते समय उनको यह पता होता था कि सामने वाले प्लेअर को किस तरह से आउट किया सकता है। टेनिस भी मुझे बेहद पसंद है। जब मैंने क्रिकेट खेलना शुरू किया था, तब इंदौर में टेनिस कोर्ट नहीं था। मैंने सोच लिया कि अब इस जन्म में क्रिकेट खेल लेती हूं, अगला जन्म टेनिस के नाम।

मैंने महिला क्रिकेट में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। एक बार हम ट्रेन से मैच खेलने गए और दो दिन तक जनरल बोगी के टॉयलेट के बाहर बैठना पड़ा। इस बीच अगर किसी को टॉयलेट आना-जाना होता, तो हमें सारा सामान उठाना और लगाना पड़ता। आज क्रिकेटर्स को टूर के दौरान न्यूट्रिशन से भरा खाना मिलता है, डाइट कंट्रोल की बात की जाती है। उन दिनों पूरी आलू खाने को दिया जाता था। लेकिन यह केवल खिलाडि़यों का जुनून था कि वे क्रिकेट के लिए कुछ भी सहने को तैयार थीं। जब मैं पहली बार बनारस नेशनल खेलने गयी, तो रहने की व्यवस्था बिलकुल गटर के पास थी। छोटे-छोटे दो कमरे, एक कमरे में 8 लड़कियां। हमें जब अपना सामान खोलना होता था, तो कुछ को कमरे से बाहर निकलना होता था। लेकिन इन बातों को हमने कभी तकलीफ नहीं माना। मन में एक ही बात थी कि देश के लिए खेलना है। मुझे याद है कि मैं अपनी गुल्लक तोड़ कर पैसे निकालती थी और उससे क्रिकेट के वीडियो कैसेट खरीदती थी और उन्हें बार-बार देखा करती थी, ताकि कुछ नया सीखने को मिले।

पेरेंट्स गर्ल्स एजुकेशन के लिए तो आगे आए हैं, लेकिन स्पोर्ट्स के मामले में बहुत जागरूक नहीं दिखते, ऐसा क्यों? मिनोती कहती हैं कि लड़कियों को ले कर पेरेंट्स की मानसिकता में बदलाव तो आया है कि उनकी पढ़ाई पर खर्च किया जाए, तो वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनेंगी। लेकिन अब तो खेलों में भी नौकरियां हैं। एक समय था, जब केवल टॉप के खिलाडि़यों को ही नौकरियां मिलती थीं, अब ऐसा नहीं है। आज खिलाडि़यों की मदद करने के लिए ढेरों सरकारी स्कीम्स हैं, लेकिन इसकी जानकारी सभी को नहीं होती। अब इस स्टीरियोटाइप सोच से निकलने की जरूरत है।

अब महिला क्रिकेटर्स काे ज्यादा क्रेडिट मिल रहा है। मिथाली राज, झूलन गोस्वामी ने इस गेम्स से बहुत प्यार किया है। नौकरियां तो बहुत प्लेअर्स को मिलीं। लेकिन सालों खेलने के बाद उनको कुछ साल पहले ही तो पहचान मिली है। अब लोग वुमन क्रिकेट भी देखने लगे हैं। इसके पीछे लोगों का केवल क्रिकेट के लिए प्यार है। लड़का हो या लड़की, हर बच्चे को खेलना पसंद है। माता-पिता को उसे बढ़ावा देने की जरूरत है। आज दूरदराज के ग्रामीण इलाकों से हर क्षेत्र से महिला खिलाड़ी निकल रही हैं।

लड़कियों के लिए मेरा यही मैसेज है कि मन पक्का करना होगा, कड़ी मेहनत करनी होगी और फिर रास्ते खुलते जाएंगे। अंडर 15 की टीम में पहुंचने के बाद राहें आसान हो जाएंगी। आज क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड भी बहुत सपोर्ट कर रहा है। पुरुष क्रिकेटर्स में मुझे जसप्रीत बुमरा की बॉलिंग और केएल राहुल की बैटिंग पसंद है। रोहित शर्मा भी अच्छे लगते हैं।

मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन में वुमन सीनियर सलेक्शन कमिटी की सदस्य के रूप में मैंने पाया है कि इंडियन महिला टीम बहुत अच्छा खेलती है। एशिया में इंडिया और श्रीलंका की महिला क्रिकेट टीम बेस्ट हैं। श्रीलंका की क्रिकेटर्स टेक्नीकली बहुत अच्छी हैं। अब तो नेपाल में भी महिला क्रिकेट खेला जाने लगा है। पिछले 3-4 साल की बात करें, तो अब हम कहीं पीछे नहीं हैं। शुरुआत में वुमन क्रिकेट टीम में फील्डिंग को कमजोर माना जाता था, अब ऐसा नहीं है। मिनोती देसाई क्रिकेट के बाद अब लेखन के क्षेत्र में भी हाथ आजमाने को तैयार हैं। इनकी लिखी बुक शीः द क्रिकेटर एक महिला क्रिकेटर के संघर्ष की कहानी है।