Friday 01 October 2021 05:06 PM IST : By Nishtha Gandhi

खाना पकाने के एक्सपेरिमेंट्स जो बदल गए टेस्टी रेसिपीज में

चलिए बात करते हैं कि कुछ ऐसे व्यंजनों की, जिन्हें खाते समय आप भी सोचते होंगे कि आखिर सबसे पहले इन्हें किसने बनाया होगा। मजे की बात तो यह है कि वे सारे व्यंजन जो आज किसी भी पार्टी की शान माने जाते हैं, वे सालों पहले किसी की गलती से बने थे। यानी बनाना कुछ और चाहते थे और बन कुछ और गया।

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शाही गलती से बना सांभरः सांभर 18वीं सदी में तंजौर के मराठा राजा शाहूजी की गलती से बना था। शाहूजी को आमटी दाल खाने का बहुत शौक था। इस दाल में कोकम डाला जाता है। लेकिन एक बार किसी प्राकृतिक आपदा के कारण राज्य में कोकम का स्टाॅक खत्म हो गया। उसी समय उनके चचेरे भाई सांभाजी का किसी काम से महल आना हुआ। आमटी ना बन पाने से शाहूजी नाराज थे, तब किसी दरबारी के कहने पर शाहूजी ने इमली और सब्जियां डाल कर दाल बनवायी। यह दाल शाहुजी और सांभाजी दोनों को बेहद पसंद आयी। तब शाहुजी ने अपने मेहमान सांभाजी के सम्मान में इस दाल का नाम ही सांभर कर दिया। एक और कहानी के अनुसार शिवाजी के बेटे सांभाजी एक बार रसोई में खुद ही खाना बनाने पहुंच गए। उन्होंने दाल में सब्जियां तो डाली हीं, इमली भी डाल दी। रसोइया डर के मारे सांभाजी को यह नहीं कह पाया कि दाल में इमली नहीं डलती। जब सांभाजी ने यह दाल खायी, तो उन्हें बेहद पसंद आयी और इस तरह से सांभाजी के नाम पर सांभर का नाम पड़ गया।

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कॉटन के दाम और पाव भाजीः कहा जाता है कि 1860 के दशक में जब अमेरिका में सिविल वाॅर चल रही थी, तो उस समय भारतीय कॉटन की वहां खूब डिमांड थी। मुंबई के व्यापारी जहाज में कॉटन लदवाने से पहले बाॅम्बे काॅटन एक्सचेंज के बाहर खड़े काॅटन के दाम लगने का इंतजार किया करते थे। दाम अकसर टेलीग्राफ के द्वारा देर शाम और कभी-कभी रात को आया करते थे और इस इंतजार में व्यापारी खाना खाने घर भी नहीं जा पाते थे। तब एक ठेलेवाले ने दिमाग चलाया और बची हुई सब्जी को तवे पर मक्खन के साथ फ्राई करके उन्हें बचे हुए पाव के साथ इन व्यापारियों को सस्ते दाम में बेच दिया। भूखे व्यापारियों के बीच यह डिश बहुत जल्दी लोकप्रिय हो गयी और पाव भाजी कहलायी। 

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खाली समय में बना वड़ा पावः कुछ ऐसी ही कहानी है वड़ा पाव की, जिसे मुंबई दादर स्टेशन के बाहर पोहा और बटाटा वड़ा बेचनेवाले अशोक वैद्य ने बनाया। उन्हीं के बगल में एक ठेलेवाला आॅमलेट और पाव बेचा करता था। एक दिन खाली समय में अशोक वैद्य ने पड़ोसी के ठेले से पाव उठा कर उसके बीच में अपना बटाटा वड़ा और लहसुन की चटनी लगा दी। जब उन्होंने खुद इसे खाया, तो यह बहुत अच्छा लगा। बस तभी से वड़ा पाव ने मुंबईवालों के दिल में अपनी जगह बना ली। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हर साल 23 अगस्त को वर्ल्ड वड़ा पाव डे के रूप में मनाया जाने लगा है। 

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वीआईपी डिमांड पर बना बटर चिकनः अब बात करते हैं हर दिल अजीज बटर चिकन की। भारत की प्रसिद्ध रेस्टोरेंट चेन मोती महल के मालिक कुंदनलाल गुजराल विभाजन के समय पेशावर से हिंदुस्तान आए थे। वहां वे एक ढाबे में काम करते थे। वहां भी उनके हाथ का बना तंदूरी चिकन लोगों के बीच खूब फेमस था। भारत आने के बाद उन्होंने मोती महल डीलक्स नाम से रेस्टोरेंट की शुरुआत की और यहां भी तंदूरी चिकन के दीवानों की संख्या बढ़ा ली। एक रात जब वे रेस्टोरेंट बंद करने ही वाले थे, तो एक वीआईपी गेस्ट की फरमाइश पूरी करने के लिए उनके पास कुछ खास नहीं बचा था। तब उन्होंने तंदूरी चिकन के बचे हुए पीसेज को प्याज, टमाटर और बटर की ग्रेवी में मसालों के साथ पका कर सब्जी बना दी। कहना ना होगा कि मेहमानों को यह नयी डिश बहुत पसंद आयी और इस तरह से कुंदनलाल गुजराल के बटर चिकन की ईजाद हो गयी। जल्दी ही यह डिश मोतीमहल डीलक्स के मेन्यू की सबसे पसंदीदा डिश बन गयी। कहते हैं जवाहरलाल नेहरू मोती महल के तंदूरी चिकन और कबाब के बहुत शौकीन थे।

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गुस्से में बने पोटैटो चिप्सः हर दिल अजीज पोटैटो चिप्स की कहानी भी कम रोचक नहीं है। 1853 में जाॅर्ज क्रम नाम के एक शेफ ने लगभग गुस्से में इनका ईजाद कर दिया था। वे हाइवे पर बने एक होटल में काम करते थे। एक दिन रात को एक कस्टमर ने पोटैटो फ्राइज की डिमांड की। जब जाॅर्ज ने उसे फ्राइज सर्व की, तो उसने यह कह कर वापस भेज दी कि ये फ्राइज मोटी, तेल से भरी और बेस्वाद हैं। उसे थोड़ी कुरकुरी फ्राइज चाहिए थीं। जाॅर्ज से यह बेइज्जती बर्दाश्त नहीं हुई। उसे सबक सिखाने के लिए उन्होंने एक आलू को छील कर बहुत पतले स्लाइस में काटा और कड़ाही में तब तक तला जब तक कि वे कड़े नहीं हो गए। वे कस्टमर को उसका आॅर्डर सर्व करके दूर खड़े तमाशा देखने लगे। लेकिन यह क्या, अबकी बार जो उस कस्टमर ने फ्राइज खाने शुरू किए, तो उसका हाथ ही नहीं रुका। वह ना सिर्फ सारी प्लेट साफ कर गया, बल्कि खूब खुश हो कर वहां से गया। जब जाॅर्ज ने बची हुई फ्राइज खा कर देखीं, तो उन्हें भी ये बहुत पसंद आयीं और इस तरह बन गए पोटैटो चिप्स।

मंगोलों का साथी पनीरः पनीर सबसे पहले मंगोलों की गलती से बना था। वे अपनी लंबी यात्राओं के दौरान अपने साथ चमड़े के थैलों में दूध भर कर घोड़ों की पीठ पर लाद कर ले जाते थे। एक बार रेगिस्तान के लंबे सफर में उन्होंने देखा कि दूध में से पानी अलग हो गया है। यह पानी तो पीने में स्वादिष्ट नहीं था, लेकिन चमड़े के थैलों के किनारों पर जमा सफेद चीज जब उन्होंने चखी, तो उन्हें बेहद पसंद आयी और इस तरह से पनीर भी मंगोलों का साथी बन गया।

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मजबूरी में बने कबाबः कुछ ऐसी ही कहानी है कबाब की। इसे तुर्क सैनिकों ने ईजाद किया था। कहते हैं कि ये सैनिक अपनी लंबी यात्राओं के दौरान जानवरों काे मार कर उनके मांस के छोटे टुकड़े काट लिया करते थे। जंगल में आग तो जल जाती, लेकिन इसे पकाने के लिए बरतन नहीं मिलते थे। इसलिए वे इन टुकड़ों को अपनी तलवारों की नोंक में फंसा कर उन्हें आग में भून कर खाते थे। तुर्क सैनिकों की यही ट्रिक आ गे चल कर कबाब बन गयी।

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आलसी अमीर की सनक सैंडविचः सैंडविच जो आप फटाफट बना कर खा लेते हैं, वह एक आलसी अमीर की सनक के चलते उसके नौकरों ने बनाया। हवाई के सैंडविच आइलैंड का यह अमीर काम करते समय या जुआ खेलने में इतना मशगूल हो जाता कि खाना खाने के लिए डाइनिंग टेबल तक जाना भी उसे मंजूर नहीं होता था। एक बार ताश खेलने में वह इतना रमा हुआ था कि अपने खानसामे के बार-बार बुलाने पर भी खाना खाने नहीं गया। उल्टा उसने खानसामे काे आदेश दिया कि वह उसे कुछ ऐसा बना कर दे, जो वह एक हाथ से पकड़ कर खा सके, क्योंकि दूसरे हाथ में उसने ताश पकड़े हुए थे। खानसामे ने उसे दो ब्रेड स्लाइस के बीच में ही हैम और सब्जियां लगा कर साॅस के साथ दे दीं। सैंडविच आइलैंड में बनाए जाने के कारण इस डिश का नाम सैंडविच पड़ गया।