Friday 26 March 2021 12:03 PM IST : By Deepti Mittal

नो ब्रा कैंपेनः ब्रा से नाराजगी क्यों

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समय-समय पर पूरे विश्व में फेमिनिस्ट कैंपेंस चलते रहे हैं। हिंदुस्तान भी इस चीज में पीछे नहीं रहा। सेक्सुअल हैरेसमेंट के खिलाफ ‘मीटू’ कैंपेन भी पूरे देश को हिलाने में कामयाब रहा था। इसके अलावा घरेलू हिंसा के खिलाफ ‘बेल बजाओ’ कैंपेन, महिलाओं की रात को घूमने की आजादी को ले कर ‘पिंजरा तोड़’ कैंपेन भी चलाए गए।

ये सभी कैंपेन निर्विवादित रूप से सराहे गए। लेकिन एक फेमिनिस्ट कैंपेन, जो सुर्खियों में भी रहा और विवादों में भी, वह है ‘नो ब्रा’ कैंपेन। यानी ब्रा को कहें बाय-बाय, इसे घर छोड़ के आएं। तो आइए जानते हैं, यह ‘नो ब्रा’ कैंपेन है क्या, कहां से चला और भारत में इसकी क्या स्थिति है?

13 अक्तूबर को ‘नेशनल नो ब्रा डे’ मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य ब्रेस्ट कैंसर के खिलाफ जागरूकता फैलाना है। लेकिन जिस ‘नो ब्रा’ कैंपेन की हम बात कर रहे हैं, वह दक्षिण कोरिया की जानीमानी मॉडल, एक्ट्रेस सुली का चलाया हुआ है, जिसने साल 2017 में अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर टॉप के नीचे बिना ब्रा पहने कुछ फोटो पोस्ट की, जिन पर तीखी बहस छिड़ गयी। कुछ लोगों ने इसे पब्लिसिटी स्टंट बताया, वहीं कुछ ने इसे महिलाओं की ‘फ्रीडम ऑफ चॉइस’ से जोड़ कर देखा। फिर शुरू हुआ ‘नो ब्रा’ कैंपेन, जिसमें महिलाओं ने बिना ब्रा पहने फोटो पोस्ट करना और सार्वजनिक जगहों पर घूमना शुरू कर दिया, यह कहते हुए कि ब्रा को उन पर जबरन नहीं थोपा नहीं जा सकता। यह कैंपेन भारत के महानगरों में भी फैल गया। इसे अपनी आजादी का कैंपेन मान कर नौकरीशुदा महिलाओं की अच्छी-खासी जमात इसके सपोर्ट में आ गयी। वे ऑफिस, पब्लिक प्लेस पर बिना ब्रा के नजर आने लगीं।

मुंबई की युवा चार्टर्ड अकाउंटेंट नेहा जायसवाल कहती हैं, ‘‘ब्रा पहनना या ना पहनना, यह बिलकुल पर्सनल चॉइस होनी चाहिए। नार्मली मैं घर में ब्रा नहीं पहनती, लेकिन घर से बाहर तो पहन कर ही जाना पड़ता है। कभी-कभी मेरे वर्किंग ऑवर इतने लंबे हो जाते हैं कि ब्रा के स्ट्रेप्स बुरी तरह चुभने लगते हैं, ईचिंग होने लगती है... उस वक्त मन करता है कि इसे उतार कर फेंक दूं। हो सकता है मैं भी बहुत जल्द यह कैंपेन जॉइन कर लूं,’’ नेहा हंसते हुए बोली।

इस बारे में हमने पुणे की एक आईटी कंपनी के कुछ कर्मचारियों से बात की, जहां यह मूवमेंट जोरशोर से चल रहा था। इंजीनियर शलाका ने अपनी कुछ कलीग्स की देखादेखी नो ब्रा मूवमेंट जॉइन किया। वे कहती हैं, ‘‘ब्रा हो या चूड़ी, बिछुए, मंगलसूत्र... ये सारी चीजें महिलाओं को बांध कर रखने के लिए बनायी गयी हैं। मैं कुछ भी किसी और के प्रेशर में क्यों पहनूं? मेरा मन करेगा पहनूंगी, नहीं करेगा तो नहीं पहनूंगी।’’

शलाका के मेल कलीग विपिन इस बात से काफी नाराज दिखायी दिए। उनका कहना है आजकल महिलाएं फेमिनिज्म का झंडा उठा कर कुछ भी कैंपेन चला रही हैं। अब आप ही बताइए, ब्रा पहनना इन्हें असुविधाजनक लगता है, इससे इनकी आजादी छिनती है। लेकिन यही महिलाएं ऑफिस में पूरा दिन बेहतर दिखने के लिए हाई हील पहनती हैं, टाइट कपड़े पहनती हैं, तब इनको आराम और सुविधा दिखायी नहीं देती। आजादी तो हम मर्दों को भी चाहिए, ऑफिस में 10-12 घंटे लेदर शूज पहन कर रखने पड़ते हैं। मुझे कितनी बार पैरों की उंगलियों में फंगल इन्फेक्शन हो चुका है। पर क्या करें ! ड्रेस कोड में लिखा है, तो पहनना पड़ेगा। मगर उसमें यह नहीं लिखा कि महिलाओं को ब्रा भी पहननी पड़ेगी, इसलिए वे जो चाहे कर सकती हैं।’’

सचिन एक घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘‘मेरा क्लाइट प्रेजेंटेशन था। एक भारी कदकाठी की महिला, जिसने बड़ी थिन फेब्रिक की टीशर्ट पहनी थी, मेरे सामने आ कर बैठ गयी। उसने ब्रा नहीं पहनी थी। जब बैठी, तो उसके दोनों बूब्स टेबल पर ठीक मेरे सामने टिक गए। मैं कॉन्शस हो गया। बार-बार नजर उधर ही जा रही थी। डर भी लग रहा था कि यह मुझ पर ‘मीटू’ का केस ना कर दे... इस चक्कर में मेरे प्रेजेंटेशन की बैंड बज गयी।’’

45 वर्षीय मंजू गुप्ता जो एचआर एग्जिक्यूटिव हैं, कहती हैं, ‘‘अगर किसी को ब्रा नहीं पहननी है तो ना पहने, मुझे समझ नहीं आता कि इसमें कैंपेन चलाने की क्या बात है? मैं और मेरी बेटी घर में ब्रा नहीं पहनते, ना ही सोते हुए पहनते हैं, लेकिन घर से बाहर जाते हुए पहनते हैं, क्योंकि यह मुझे आराम और अच्छी फिटिंग देती है। वैसे भी अगर बाहर ब्रा नहीं पहनेंगे, तो क्या लोगों की नजरें हमारे सीने पर नहीं ठहरेंगी? क्या तब हमें अच्छा लगेगा? अगर कल को मेरे पति बिना अंडरवियर के लुंगी या पाजाम पहन कर घर से बाहर जाने लगें, तो क्या मैं उन्हें जाने दूंगी? और फिर ऑफिस में ‘नो ब्रा’ कैंपेन चलाने वाली ज्यादातर महिलाएं घर जाने से पहले ब्रा पहन लेती हैं, क्योंकि ये रास्ते में लोगों की बुरी नजरों का सामना नहीं कर सकतीं... फिर इनके घर में बेटा है, ससुर हैं, पिता हैं... उनके सामने ये इस कैंपेन को जारी नहीं रख सकतीं। क्या यह डबल स्टैंडर्ड नहीं है?’’

सीमा कहती हैं, ‘‘ब्रा पहनने ना पहनने को महिलाओं की आजादी से जोड़ने का क्या मतलब? किसी धर्म या समाज में बुर्के, घूंघट या मंगलसूत्र की तरह यह कभी नहीं कहा गया कि महिलाओं को ब्रा पहननी जरूरी है। आज भी गांव-कस्बों में महिलाएं जो घूंघट लेती हैं, वे भी ब्रा नहीं पहनतीं। मेरी कुक जिसकी उम्र 50 वर्ष है महाराष्ट्रीयन स्टाइल साड़ी पहनती है, सिर पर पल्ला रखती है, लेकिन वह भी ब्लाउज के नीचे ब्रा नहीं पहनती। उसको तो नो ब्रा कैंपेन से कोई मतलब भी नहीं...।’’

गाइनीकोलॉजिस्ट अरुणा आर्य के अनुसार, ‘‘ब्रा पहनने के और ना पहनने के ऐसे कोई फायदे या नुकसान नहीं हैं। हां, सही फिटिंग और फैब्रिक की ब्रा ना पहनने के नुकसान जरूर हैं। फिजिकल वर्क जैसे मॉर्निंग वॉक, जाॅगिंग करते हुए और डिलीवरी के बाद दूध के कारण हेवी हो चुके स्तनों को ब्रा अच्छा सपोर्ट देती है। यह आपके लिबास को बेहतर फिटिंग देती है। यह आपकी सुविधा के लिए बनी है, आपकी आजादी छीनने के लिए नहीं।’’

व्योमेश शुक्ला को महिलाओं के नो ब्रा कैंपेन से कोई समस्या नहीं है, उन्हें समस्या है वर्कप्लेस पर महिलाओं और पुरुषों के लिए अपनाए जा रहे अलग-अलग मापदंडों से। उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहा, ‘‘एक बार एक त्योहार पर मैं जींस और लखनवी कुरता पहन कर ऑफिस आ गया। मैं शर्ट के नीचे बनियान नहीं पहनता हूं, इसलिए कुरते के नीचे भी नहीं पहना। मैं आराम से अपना काम कर रहा था कि मुझे एचआर से कॉल आ गयी कि मेरी ड्रेस इनडीसेंट है, जिससे मेरी महिला सहकर्मियों को परेशानी हो रही है। दरअसल मेरे कुरते से मेरे निप्पल और मेरे चेस्ट के बाल हल्के से दिख रहे थे। यह उतना भी नोटिसेबल नहीं था फिर भी मुझे घर जा कर चेंज करने के लिए कहा गया। वहीं जब मेरे एक कलीग ने एक महिला की ब्रा लेस ड्रेस, जिसमें से उसके निप्पल दिख रहे थे, की शिकायत एचआर मैनेजर से की, तो वह बोला, ‘‘सॉरी, वी कांट हेल्प... इस बारे में हमारे पास कोई गाइडलाइंस नहीं हैं।’’ बाद में कैजुअल नोट पर यह भी कह दिया... ‘इन सबकी आदत डाल लो, सुखी रहोगे।’ अब आप ही बताइए अगर ब्रा लेस होना इक्वालिटी को प्रमोट करता है, तो हम मर्द बनियान, टाई, फुल स्लीव्स शर्ट्स क्यों नहीं छोड़ सकते? हमें तो ड्रेस कोड का हवाला दे कर आफिस में एंटर भी नहीं करने दिया जाएगा।’’

52 वर्षीय आर्किटेक्ट मनोज हीरानी कहते हैं, ‘‘निश्चित रूप से ब्रा पहनना या ना पहनना पर्सनल चॉइस होनी चाहिए, लेकिन यह देखना जरूरी है कि आप पर्सनल चॉइस कहां-कहां लागू कर सकते हैं। मेरा अपना ऑफिस है फिर भी मैं क्लाइंट से सही तरीके से ड्रेसअप हो कर मिलता हूं, ताकि उसका और मेरा फोकस सिर्फ और सिर्फ काम पर रहे, मेरे कपड़ों पर नहीं। मैं अपने ऑफिस में ऐसी महिलाओं को जॉब नहीं दूंगा, जो ऑफिस में पर्सनल चॉइस पूरी करने आएंगी। ऑफिस के बाहर वे कुछ भी करें, ऑफिस के अंदर उन्हें कुछ नियमों का पालन करना पड़ेगा। मैं नहीं चाहूंगा जब वे क्लाइंट को ड्राफ्ट समझा रही हों, तो क्लाइंट कुछ और ही सोच रहा हो।’’

किसी भी आम कपड़े की तरह इसे पहनना या ना पहनना आप पर है, किसी और पर नहीं। आप इस कैंपेन बारे में क्या सोचती हैं, हमें जरूर बताइएगा।