Monday 05 October 2020 11:25 AM IST : By Meena Pandey

एक मुलाकात ट्रांसजेंडर मिस युनिवर्स डाइवर्सिटी नाज जोशी से, जो मां भी है अौर मॉडल भी

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‘‘मैं हूं नाज जोशी, ट्रांसजेंडर मिस युनिवर्स डाइवर्सिटी। डाइवर्सिटी का मतलब है विभिन्नता। यह एक ऐसा कॉन्टेस्ट है, जिसमें लगभग 30 देशों की हर तरह की महिलाएं पार्टिसिपेट कर सकती हैं। मेरे जैसी भी। मैं मिस वर्ल्ड डाइवर्सिटी के 3 खिताब पहले भी जीत चुकी हूं। इस साल कोविड-19 की वजह से फ्लाइट्स बंद थीं, इसलिए प्रतियोगिता डिजिटल ही करायी गयी। ऑनलाइन टास्क में मैंने वुमन सेफ्टी पर काम करने का टारगेट तय किया, इस फील्ड में काम करके दिखाया अौर खिताब मेरे नाम रहा।’’
हर लड़की सीखे सेल्फ डिफेंस ः नाज कहती हैं, ‘‘मैंने गांव-गांव जा कर लोगों को अपने घर की महिलाअों को सेल्फ डिफेंस की क्लासेस अटैंड कराने के लिए प्रेरित किया। वे कहती हैं कि मैं खुद का एक सेल्फ डिफेंस सेंटर लड़कियों के लिए खोलना चाहती हूं। माता-पिता को अपने बच्चों के बेडरूम में कैमरा लगाना व उसका टेलीकास्ट अपने मोबाइल पर रखना चाहिए, ताकि बच्चों की सेफ्टी अौर घर में नौकर-चाकर, रिश्तेदार पर नजर रख सकें।
रेप विक्टिम की बेटी को अपनाया ः नाज की दो महीने की छोटी बेटी की बायोलॉजिकल मां 16 साल की एक रेप विक्टिम है। वह बच्ची के जन्म के बाद उसे कूड़ेदान के पास छोड़ कर जा रही थी। नाज ने कहा, ‘ऐसे मत करो’, तो वह रो पड़ी। बोली, ‘‘मेरे घर में कोई इसे नहीं अपनाएगा।’ वह बच्ची नाज को थमा कर चली गयी। अब वह नाज की बेटी है, जिसको वे रेगुलर डॉक्टर के पास चेकअप के लिए ले जाती हैं। उसे इन्क्यूबेटर में भी एक महीने रखना पड़ा।
हम भटकते फिरे बादलों की तरह ः क्यों वे बचपन बचाना चाहती हैं? पूछने पर उनके अंदर का गुबार फूट पड़ता है, ‘‘क्योंकि मैंने अपना बचपन देखा ही नहीं। मैं 7-8 साल की उम्र से यौन शोषण का शिकार हो रही थी चाहे वे मेरे कजिन ब्रदर रहे हों, चाचा या स्कूल के टीचर। जब मैं 7 साल की थी, पेरेंट्स ने मुझे घर से निकाल दिया। मैंने बॉम्बे में अपने मामा के घर में आसरा पाया। वहां 11 साल की उम्र में मेरा रेप हुआ। मैं घर छोड़ कर बार डांसर बन गयी। मेरी एक कजिन सिस्टर विवेका बाबाजी ने मेरी एजुकेशन स्पॉन्सर की। मैंने निफ्ट से फैशन डिजानिंग में ग्रेजुएशन, फिर गाजियाबाद से एमबीए किया।

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पहले सेक्स वर्कर बनी फिर किन्नर ः वे अपना दुख बयां करती हैं, ‘‘मुझे जॉब मिली, लेकिन मेरा शरीर पुरुष का था व मन औरत का। मेरी चालढाल की बहुत खिल्ली उड़ायी गयी। मुझे चोट पहुंचती थी कि मैंने इतनी पढ़ाई की, इतना बड़ा कोर्स किया, इतने अवॉर्ड जीते, मगर कोई इज्जत ही नहीं है। जॉब छोड़ी अौर दिल्ली, शाहदरा में अपना जेंडर चेंज कराया, वहां बुटीक खोला। मगर कोई आता ही नहीं था। इसके बाद 2015 तक मैंने सेक्स वर्कर का काम किया। साथ में मॉडलिंग भी। हमें ना तो सरकार जॉब दे रही है और ना ही कोई प्राइवेट इंस्टिट्यूट। कानून भले बन गया है, पर हमें बहुत कमतर समझा अौर हमारे साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। मैं अपनी बच्चियों के पालन-पोषण के लिए सुबह निकल जाती हूं। अपने कपिल गुरु के डेरे पर जाती हूं। हम किन्नर टोली बना कर जगह-जगह बधाई देने जाते हैं, नाचते-गाते हैं। प्रधानमंत्री जी ने जो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ स्कीम बनायी है, मैं उसी के जरिए सरकारी स्कूल में अपनी बेटियों को पढ़ाऊंगी। उनको अच्छी सम्मानजनक नौकरी में देखना चाहूंगी। मेरी बड़ी बेटी को उसके बायोलॉजिकल पेरेंट्स ने आपसी झगड़े की वजह से नहीं अपनाया। उसकी मां आज भी हर महीने मुझे 5000-7000 रुपए भेजती है। उन्होंने ऑफिशियली मुझे उसे गोद दे दिया है।’’
कोई नहीं अपनाता ः मेरे पिता जी को कैंसर हो गया है, इसलिए मैं उन लोगों के पास चली गयी। उनकी सेवा कर रही हूं, पर मेरी मां मुझे रिश्तेदारों से बात नहीं करने देती, कमरे में बंद कर देती है। मैं चाहती हूं कि हम पर दया ना की जाए, हमें खुद को काबिल साबित करने का मौका दिया जाए। हम खाना अच्छा बना सकते हैं, बच्चों की केअर कर सकते हैं, हम तो घरों में झाड़ू-पोंछा तक करने को तैयार हैं, पर समाज हमें अपनाता नहीं है। हम भीख मांगना नहीं चाहते। मैंने इंडिया के लिए 6 इंटरनेशनल ब्यूटी कॉन्टेस्ट जीते हैं। मैंने शुरुआत की 2015 से 2017 में जब मानुषी छिल्लर को मिस वर्ल्ड का साउथ अफ्रीका में अवॉर्ड मिला, उसी समय मुझे मिस डाइवर्सिटी का खिताब मिला। मीडियावाले ट्रांसफोबिक हैं, हमको नजरअंदाज करते हैं। वे हमारे अचीवमेंट्स पर सक्सेस स्टोरी नहीं लिखते। मीडिया अगर सपोर्ट करे, तो हम दूसरे संघर्ष कर रहे ट्रांसजेंडर के लिए प्रेरणा बन सकते हैं। हममें किस बात की कमी है? यह भेदभाव क्यों?
कोविड-19 के बाद ः पहले तो रेगुलर शादियों में शगुन में गाने-नाचने जाते थे, अच्छे पैसे मिल जाते थे, लेकिन आजकल तो 5-10 हजार ही मिलता है। इसमें बाकी किन्नरों के साथ गुरु का शेअर भी होता है। बहुत मुश्किल समय है।
खुद पर है नाज ः मैं भारत की पहली किन्नर हूं, जो तहलका मैगजीन की कवर मॉडल बनी। दुनिया की पहली ट्रांसजेंडर मॉडल हूं, जिसने सैनिटरी नैपकिन का एड भी किया है। मैं प्रोफेशनल मॉडल होने की हिम्मत रखती हूं, पर पैसा नहीं मिलता। मिलाप एनजीओ से 2000 रुपए का डोनेशन मिल जाता है, जिससे राशन का इंतजाम हो जाता है। मैंने जो उपलब्धियां इतना ठुकराए जाने के बाद हासिल कीं, उन पर मुझे फख्र है। कई कॉन्टेस्ट में सलेक्ट ना होने पर भी हौसला नहीं खोया, इस बात का मुझे अपने ऊपर बहुत नाज है। अब मैं एक कॉन्टेस्ट में भाग लेने न्यूयॉर्क जाऊंगी। नतीजा जो भी हो, मुझे अागे बढ़ते जाना है।