Tuesday 23 March 2021 03:48 PM IST : By Nishtha Gandhi

पर्यावरण बचाने के लिए नयी पहल मंदिरों के फूलों से बन रहा है गुलाल

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क्या कभी सोचा है कि आप बड़ी श्रद्धा से भगवान के मंदिर में जो फूल चढ़ाते हैं, उनका क्या होता है? इधर आपने फूल चढ़ाए और उधर वे कचरा बन जाते हैं। बड़े-बड़े मंदिरों में तो हजारों और लाखों टन फूल चढ़ते हैं, जिनसे निपटना एक बहुत बड़ी समस्या है। ये फूल या तो मंदिर में ही कचरे के ढेर में तब्दील होते जाते हैं या फिर नदियों में बहा दिए जाते हैं। लेकिन अगर यही फूल कमाई का जरिया बन जाएं, तो फिर कहने ही क्या। कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं मंदिरों से इन फूलों को इकट्ठा करके इनसे हर्बल गुलाल, अगरबत्ती, इत्र जैसी चीजें बना रही हैं। वृंदावन के महिला आश्रय सदन में रहने वाली महिलाओं को रोजगार देने के लिए दो साल पहले बृज गंधा प्रसार समिति की स्थापना की गयी थी। यहां के संचालक संतोष मिश्रा का कहना है, ‘‘इस आश्रम में लगभग सवा दो सौ महिलाएं रहती हैं। इनमें से ज्यादातर ऐसी हैं, जिनका घर-परिवार नहीं है। इन्हें रोजगार देने के लिए अब यहां मंदिरों से फूल इकट्ठा करके उनसे हर्बल गुलाल और अगरबत्तियां बनायी जाती हैं। फूलों को अलग करने और हाथ से अगरबत्तियां बनाने का काम महिलाएं करती हैं। फूल सुखाने और उनका पाउडर बनाने जैसे बाकी काम करने के लिए मशीनें हैं। इस तरह यहां रहने वाली महिलाएं ना सिर्फ बिजी रहती हैं, बल्कि वे एक घंटे के 50-60 रुपए तक भी कमा लेती हैं।’’

इन महिलाओं को फ्लावर एंड फ्रेगरेंस डिपार्टमेंट द्वारा 10 दिन की ट्रेनिंग भी दी गयी, जिसमें इन्होंने यह काम सीखा था। यूपी के कन्नौज में भी ऐसी ही एक यूनिट और सक्रिय है। इसके अलावा शिरडी में भी महिलाओं द्वारा मंदिर में चढ़ाए गए फूलों से ऑर्गेनिक अगरबत्तियां बनाने का काम शुरू किया जा चुका है। इनकी कमाई से मिलने वाले मुनाफे का कुछ प्रतिशत मंदिर ट्रस्ट को जाता है।

कमजोर दिमाग और सधे हाथों से बनता है गुलाल

herbal-gulal-7 सोसाइटी फॉर चाइल्ड डेवलपमेंट के सेंटर में फूलों से गुलाल बनाते मंदबुद्धि लोग

ना सिर्फ मंदिरों और छोटे शहरों, बल्कि शहरों में होटल, बैंक्वेट हॉलों में सजावट के लिए जो फूल इस्तेमाल किए जाते हैं, वे भी अगले दिन कचरे में फेंक दिए जाते हैं। ये पर्यावरण और नदियों में हजारों टन कचरे का भार बढ़ाते हैं। दिल्ली की सोसाइटी फॉर चाइल्ड डेवलपमेंट की मधुमिता पुरी ने बताया, ‘‘हमारे यहां मंदबुद्धि बच्चों को ट्रेनिंग देने का काम किया जाता है। कुछ समय बाद इनके घर वालों ने हमसे पूछना शुरू किया कि क्या ये कभी काम नहीं कर पाएंगे, क्योंकि जिस तबके से ये लोग आते हैं, वहां पर पढ़ने-लिखने से ज्यादा बड़ा सवाल है इन्हें कमाई का कोई साधन देना। तभी से यह आइडिया आया कि क्यों ना इन्हें कुछ आसान कामकाज सिखाए जाएं। लेकिन पैसों की कमी से यह आइडिया साकार रूप नहीं ले सका।’’

herbal-gulal-1 अवाकायम के तहत मंदिरों से इकट्ठा किए गए फूल

सोच और एक्सपेरिमेंट का तानाबाना बुनते-बुनते मधुमिता और उनकी टीम ने फूलों से गुलाल बनाना शुरू किया। हालांकि फूलों से गुलाल बनाने के आइडिया की कहानी भी कम रोचक नहीं है। मधुमिता बताती हैं, ‘‘हमारे सेंटर के सामने ही एक मंदिर था, जहां पर भगवान को चढ़ने वाले फूल और फूल मालाएं वे लोग सड़क पर या हमारे सेंटर के सामने ही फेंक देते थे। इस गंदगी से बचने के लिए हमने सोचा कि क्यों ना हम ही इन फूलों को नदी में प्रवाहित कर दें। लेकिन नदियों का हाल तो इससे भी ज्यादा बुरा था। हम वे फूल ले कर वापस ही आ गए। इन फूलों का निपटारा अब हमारे लिए सिर दर्द बन गया था। फिर कहीं से हमें पता चला कि इन फूलों से हम गुलाल और अगरबत्ती जैसी चीजें बना सकते हैं। धीरे-धीरे इस दिशा में हमने काम करना शुरू किया और इस तरह प्रोजेक्ट अवाकायम की शुरुआत हो गयी।

herbal-gulal-8 गुलाल बनाने से पहले फूलों को इस प्रकार सुखाया जाता है

अवाकायम का मतलब है फूल इकट्ठा करना। 500-700 किलो फूल रोज इकट्ठा करके अब ये लोग सालाना 15-16 टन रंग बनाने में सफल हो पाए हैं। छोटे स्तर पर शुरू किया गया यह काम अब बहुत बढ़ चुका है। हाल ही में इनके प्रोजेक्ट ट्रैश टू कैश ने दिल्ली से सटे नोएडा के भी कई मंदिरों के साथ मिल कर फूल इकट्ठा करने शुरू कर दिए हैं।

मधुमिता का कहना है, ‘‘फूलों की खुशबू और रंग हमारे मूड पर बहुत अच्छा असर भी डालते हैं। अवाकायम से मंदबुद्धि व मूक-बधिर जुड़े हुए हैं और इसका बहुत अच्छा प्रभाव भी उनके व्यवहार में देखा गया है। ऐसे ही पॉजिटिव असर को देखते हुए मधुमिता का कहना है कि इनके अलावा मानसिक रूप से परेशान टीनएजर, डिप्रेशन के शिकार लोग और व्यवहार संबंधी परेशानियों का सामना करने वाले लोगों में भी इस काम के काफी अच्छे असर देखे जा सकते हैं।

‘‘शुरू में इस गुलाल को बेचने के लिए हमें खुद खरीदारों की तलाश करनी पड़ती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। कई बड़ी कंपनियां, होलसेलर, दुकानदार हमें खुद ही इसका ऑर्डर दे देते हैं,’’ मधुमिता ने बताया।

परंपराओं से जुड़ने की ललक

आर्ट क्यूरेटर और रेड अर्थ संस्था के डाइरेक्टर हिमांशु वर्मा गेंदे के फूल, हल्दी, नीम, गेरू, अरारोट, मुल्तानी मिट्टी, कपूर व आटे से हर्बल गुलाल बनाते हैं।

herbal-gulal-3 रेड अर्थ संस्था द्वारा बनाया गया अबीर और गुलाल

हिमांशु का कहना है, ‘‘फूलों से गुलाल बनाना अपनी जड़ों की तरफ लौटने की कोशिश है। हम हालांकि मंदिरों से निकलने वाले फूलों से गुलाल नहीं बना रहे हैं, लेकिन कोशिश कर रहे हैं कि फूलों और कुदरती रंगों से होली खेलने की पुरानी परंपरा को फिर से जीवित कर सकें। पहले हम अपनी संस्था के लिए गुलाल बनाते थे, लेकिन अब ऑर्डर पर भी गुलाल बनाने लगे हैं। नाथद्वारा और मथुरा में सफेद अबीर से होली खेलने की परंपरा रही है, जो लगभग लुप्त हो रही है। अब तो कहीं सफेद गुलाल भी आसानी से नहीं मिलता। हम इसे लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं। सफेद गुलाल बनाने के लिए कपूर, अरारोट के साथ सिंघाड़े या गेहूं के आटे को मिलाया जाता है।

herbal-gulal-5 स्किन फ्रेंडलि है हर्बल गुलाल

‘‘मंदिरों के फूलों से गुलाल बनाने में ज्यादा मेहनत और समय लगता है और वह 80-82 प्रतिशत तक ही शुद्ध रहता है। हम गुलाल बनाने के लिए ताजे फूल की पत्तियों के नीचे के भाग का ही इस्तेमाल करते हैं, जो 98-99 प्रतिशत तक शुद्ध रहता है,’’ हिमांशु का कहना है।

बहरहाल, ऐसी कोशिशें बेशक अभी कम की जा रही हैं, लेकिन अगर इन्हें बड़े पैमाने पर किया जाए, तो यह नदियों को गंदा होने से रोकने और वेस्ट मैनेजमेंट की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।

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