Thursday 22 October 2020 05:00 PM IST : By Gopal Sinha

क्यों मनायी जाती है पांच दिनों तक दीवाली

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आखिर पूरे सालभर के इंतजार के बाद त्योहारों का मौसम आ गया। इन्हीं दिनों में युवतियां बहुत सारे अरमान पूरे करने का ख्वाब सजाती हैं। एक से बढ़ कर ड्रेसेज पहनना, बढ़िया मेकअप, लजीज खाना-पीना, घूमना-फिरना, फैमिली-दोस्तों के साथ मस्ती सब कुछ त्योहार के दिनों में ही तो होता है। दीवाली अकेले नहीं आती, साथ में बेहतरीन 4 और त्योहार भी लाती है। धनतेरस से शुरू हो कर भैया दूज पर पूरा होनेवाले 5 दिनों की इस विशेष त्योहार शृंखला पर एक नजर डालते हैं और फिर तैयारियों में जुट जाते हैं-

पहला दिन धनतेरस - सौभाग्य दिवस

कहते हैं आज के दिन ही समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, इसीलिए धनतेरस के दिन उनके स्वागत की तैयारियां की जाती हैं। महान वैद्य धनवन्तरि इसी दिन क्षीरसागर से अमृत कलश ले कर अवतरित हुए थे। लंबी उम्र और सेहत के लिए उनकी पूजा की जाती है। सोने, चांदी या स्टील के बरतन खरीदना शुभ मानते हैं। रात में इस श्लोक का जाप करते हुए घर के मेन डोर पर आटे से बना यमदीप जलाएं-

मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।

त्रयोदश्यां दीपदाना सूर्यजः प्रीचतामिव।।

दूसरा दिन नरक चतुर्दशी - ज्ञान दिवस

तिल के तेल से मालिश करके नहाएं व यमदेव की पूजा करें। कहते हैं इससे यमराज प्रसन्न होंगे और व्यक्ति को नरक नहीं भोगना पड़ेगा। श्रीकृष्ण ने इसी दिन नरकासुर का वध किया था, इसीलिए इसे नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। इस मंत्र का जाप करते हुए पूजन करें-

सीता लोष्ट सहायुक्तः संकष्टः दलान्वितः।

हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण पुनः पुनः।।

तीसरा दिन दीपावली - पर्व रोशनी का

तमसो मा ज्योतिर्गमय... अंधकार चाहे बाहरी दुनिया का हो या मन का, दीवाली के दिन सब कुछ रोशन हो जाता है। पिछले 2 दिनों से चल रहे पूजा-पाठ, त्योहार की उमंग दीपावली के दिन चरम पर होती है। घर की साज-सज्जा के अलावा शाम के समय विधिपूर्वक मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है, ताकि सालभर लक्ष्मी की कृपा घर में बनी रहे। पितर मार्ग से भटक ना जाएं, इसके लिए इस रात कंदील भी जलाने की प्रथा है। इसी दिन असत्य पर सत्य की विजय हुई थी, जिसकी खुशी में लोगों ने अपने घरों को दीपमालाअों से सजाया था। श्रीब्रह्म पुराण के अनुसार दीवाली की आधी रात में मां लक्ष्मी रोशन, सुसज्जित घरों में आती हैं। घर में धन-धान्य कभी कम ना हो, इसके लिए दीवाली की रात में दीपक जलाते समय इस श्लोक का जाप करें-

शुभम् करोति कल्याणम् आरोग्यं धन संपदां।

शत्रु वृद्धि विनाशायः दीप ज्योति नमोऽस्तुते।।

चौथा दिन अन्नकूट/गोवर्धन पूजा- प्रेरणादायी दिवस

यह दिन विक्रम संवत कैलेंडर के नए साल के पहले दिन के रूप में भी मनाया जाता है। ब्रज के निवासियों के प्रमुख त्योहार अन्नकूट पर भगवान कृष्ण को नए अन्न से बने छप्पन प्रकार के पकवान-मिष्ठान्न का भोग लगाया जाता है। भागवत पुराण के अनुसार, श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठा कर वृंदावन के वासियों को 7 दिनों तक भारी वर्षा से बचाया था। इंद्र देवता ने क्रोधित हो कर यह वर्षा करायी थी, क्योंकि वहां के लोग उनके बजाय गोवर्धन पर्वत और कृष्ण की भक्ति करने लगे थे। इस दिन लोग गाय के गोबर से गोवर्धन पहाड़ बनाते हैं और पूजा करते हैं। यह पूजा पशुअों की संख्या और अन्न भंडार में बढ़ोतरी के लिए की जाती है।

पांचवां दिन भैया दूज - बहन-भाई सौहार्द दिवस

पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को घर बुला कर आदरपूर्वक खाना खिलाया था, इसी से इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। यमराज ने खुश हो कर वरदान दिया कि जो यमुना में नहा कर यम की पूजा करेगा, उसे यमलोक नहीं जाना पड़ेगा। आज यह त्योहार भाई-बहन के पवित्र व निस्वार्थ प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। बहनें भाई की पूजा करती हैं और उनकी लंबी उम्र और संपन्न होने की कामना करती हैं। इस दिन गोधन भी कूटा जाता है। गोबर से मनुष्य की आकृति बना कर महिलाएं उसके सीने पर ईंट रख कर मूसल से उसे तोड़ती हैं और कथा सुनती हैं। इसके बाद भाई को खाना खिलाती हैं और भाई अपनी शक्ति के अनुसार बहन को उपहार देते हैं। इसी दिन कायस्थ समुदाय द्वारा ज्ञान और बुद्धि पाने के लिए न्याय देवता चित्रगुप्त की पूजा भी की जाती है। माना जाता है कि चित्रगुप्त यमराज के दरबार में तीनों लोकों के प्राणियों के पाप-पुण्य का सारा लेखाजोखा रखते हैं।

पूजा में तुलसी

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बचपन में अपने घर के अांगन में तुलसी चौरा जिसने भी देखा होगा, उनसे बताने की जरूरत नहीं है कि इस छोटे से पौधे का हमारे जीवन में कितना महत्व है। हिंदू मान्यता के अनुसार, मां लक्ष्मी की अवतार तुलसी या वृंदा देवी भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थीं, इसीलिए विष्णु की पूजा में तुलसी दल यानी इसकी पत्तियां बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा में भी इसका बहुत महत्व है। आज भी सभी हिंदू परिवारों के घरों में तुलसी का पौधा पवित्रता के साथ अांगन या बालकनी में लगा होता है, जिसकी पूरे भक्ति भाव से जल अर्पण कर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। तुलसी अपने औषधीय गुणों के कारण भी हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। सरदी-खांसी होने पर इसकी पत्तियों का काढ़ा हम सबने जरूर पिया होगा।

तुलसी तेरे कितने रूपः तुलसी की कई प्रजातियां होती हैं, जिनमें राम तुलसी और श्याम तुलसी प्रमुख हैं। हरी पत्तियोंवाली तुलसी राम तुलसी कहलाती हैं और गहरे हरे या बैंगनी रंग की पत्तियों वाली तुलसी श्याम तुलसी या कृष्ण तुलसी के नाम से जानी जाती है। तुलसी को वैष्णवी, विष्णु वल्लभ, हरिप्रिया नामों से भी जाना जाता है। राम तुलसी भगवान विष्णु की पूजा में चढ़ायी जाती है, जबकि श्याम तुलसी को विष्णु के ही अवतार श्रीकृष्ण की पूजा में चढ़ाने की परंपरा है।

क्यों है तुलसी इतनी पवित्र व पूज्यः सभी पेड़-पौधों में सबसे पवित्र मानी जानेवाली तुलसी को हिंदू मान्यता के अनुसार धरती और स्वर्ग के बीच का सेतु माना जाता है। कहा जाता है कि इसकी शाखाअों में भगवान ब्रह्मा निवास करते हैं। सभी हिंदू तीर्थ इसकी जड़ों में स्थित हैं, गंगा इसकी जड़ों में बहती है और इसके तने व पत्तियों में सभी देवताअों का वास होता है। इसकी शाखाअों के ऊपरी भाग में पवित्र ग्रंथ वेदों का स्थान है। इसीलिए तुलसी के पौधे को सबसे पवित्र माना जाता है।

तुलसी की पूजा क्योंः मान्यता है कि जो भी व्यक्ति तुलसी में जल डालता है और इसका रखरखाव करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। घर की स्त्रियां तुलसी की पूजा नियमित रूप से करती हैं, क्योंकि इसे मातृत्व और स्त्रीत्व का भी प्रतीक माना जाता है। तुलसी की पूजा के खास दिन मंगलवार और शुक्रवार हैं, रविवार को तुलसी को जल नहीं दिया जाता है। तुलसी के पौधे के पास दीपक जला कर रखने को भी शुभ मानते हैं। कार्तिक मास की प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी विवाह की भी परंपरा है, जब तुलसी का विवाह विष्णु भगवान से कराया जाता है।