Wednesday 24 March 2021 12:34 PM IST : By Ruby Mohanty

बदलते मौसम में जब मूड खराब होने लगे, तो समझिए कि आप सैड सिंड्रोम से गुजर रहे हैं

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किसी के लिए गरमियों का मतलब आइसक्रीम, चुस्की, कोल्ड कॉफी है और किसी के लिए सरदियों का मतलब गरम चाय, पकौडि़यां और हलवा है। पर बहुत से ऐसे लोग हैं, जिसके लिए जरूरत से ज्यादा गरमी और जरूरत से ज्यादा सरदी का मतलब उनींदापन, आलस और उदासी है। अगर कोई व्यक्ति पूरे साल में किसी खास मौसम में बहुत उदास महसूस करता है, तो यह तय है कि वह सीजनल अफेक्टिव डिस्अॉर्डर (SAD) से प्रभावित है। यह एक तरह का शॉर्ट डिप्रेशन है। सरदियां शुरू होने से पहले से ले कर खत्म होने तक यह परेशानी रहती है। कुछ लोगों में बसंत से पहले या गरमी शुरू होने से पहले यह देखने को मिलती है।

SAD की खास वजह मौसम में जबर्दस्त बदलाव है। जितने दिनों यह मौसम रहता है, उतने दिनों तक डिप्रेशन से जिंदगी बेवजह दिखने लगती है। दिल्ली के पारस अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. प्रीति सिंह के मुताबिक SAD के लक्षण किसी व्यक्ति में हर साल दिखायी देते हैं, तो उन्हें डॉक्टरी राय लेने की जरूरत है। यह परेशानी भारत में ही नहीं विदेशों में देखने को मिलती है। खासकर SAD के लक्षण लोगों में वहां देखने को मिलते हैं, जहां उन्हें सूर्य की कम रोशनी से शरीर को गरमाहट नहीं मिलती। ऐसे इलाकों में जहां लंबे समय तक बारिश होती है और कई-कई दिनों तक धूप नहीं निकलती, वहां लोगों में SAD के लक्षण ज्यादा दिखायी देते हैं। खासकर तब जब व्यक्ति को खास समय सीमा के बीच घर में ही रहना पड़ता है। वे खुद को घर में कैद पाते हैं। ऐसे लोग भी इस मानसिक रोग से परेशान रहते हैं।

क्या है SAD की वजह

SAD मनोदशा से संबंधित एक विकार है, जिसे हर साल एक ही समय पर होने वाले अवसाद के रूप में पहचाना जाता है। यह मिजाज से संबंधित विकार है। अवसाद के दूसरे मामलों की तरह इसका इलाज भी संभव है और इसका रोगी महीनेभर में ठीक हो जाता है। यह विकार अकसर पतझड़ में शुरू होता है और सरदियों के मौसम में यह अपने चरम पर रहता है। कुछ लोगों को यह सामान्य गरमियों के दौरान भी होता है। नेचुरल न्यूज में प्रकाशित एक शोध के अनुसार हमारे शरीर को सूरज से सबसे ज्यादा विटामिन डी मिलता है। जब शरीर गरम होता है, तब ब्लड सर्कुलेशन नॉर्मल रहता है। विटामिन डी की कमी से मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर, अल्जाइमर व मोटापे का खतरा बढ़ जाता है।

कैसे पहचानें लक्षण

SAD के लक्षण भी बाकी मूड डिसऑर्डर की तरह होते हैं जैसे उदास मन, उत्तेजना, आलस, अनिद्रा, खूब सोते रहने की इच्छा। कोई व्यक्ति इस परेशानी में है, यह तय करने से पहले कम से कम 2 साल तक उसके लक्षणों पर गौर करना होगा। इन लक्षणों में डिप्रेशन, आलस और उनींदापन ज्यादा होता है। मनोवैज्ञानिक डॉ. समीर पारिख के अनुसार, अगर किसी को अचानक बिना किसी कारण थकान, अवसाद, निराशा महसूस हो, तो वह सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर से प्रभावित हो सकता है। सरदियों के मौसम में ठंड के बढ़ने के साथ-साथ शरीर को सूरज की रोशनी सही मात्रा में नहीं मिल पाती, जिस कारण शरीर की बायोलॉजिकल क्लॉक बिगड़ जाती है। इस कारण हमारे नर्वस सिस्टम में पाए जाने वाले सेरोटोनिन और मेलाटोनिन नाम के केमिकल्स की मात्रा असंतुिलत हो जाती है। सेरोटोनिन का स्तर कम और मेलाटोनिन का स्तर बढ़ जाता है। मेलाटोनिन नींद के लिए जिम्मेदार होता है। जब इसकी मात्रा बढ़ जाती है, तो ज्यादा नींद आने के साथ सुस्ती भी बढ़ जाती है। वहीं सेरोटोनिन की मात्रा तब बढ़ती है, जब धूप सही मिले। इसकी कमी के चलते डिप्रेशन बढ़ता है। इस तरह के परिवर्तन बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों पर ज्यादा असर करते हैं। वे मानसिक रूप से अस्थिर हो जाते हैं। इसे मौसमी भावनात्मक विकार भी कहा जाता है। यह ऐसे मौसम में होता है, जब पूरे साल में कुछ निश्चित समय पर सूर्य की रोशनी कम होती है। सिर्फ भारत में हर साल इस समस्या के 1 करोड़ से ज्यादा मामले सामने आते हैं।

क्या रखें सावधानियां

मौसम को नहीं बदला जा सकता। लेकिन खास सावधानियां रख कर मूड को बदला जा सकता है-

अगर आप SAD से गुजर रहे हैं, तो किसी डॉक्टर से मिलें। वैसे कुछ बदलाव आप खुद भी अपने लाइफस्टाइल में ला कर SAD को कुछ हद तक काबू में कर सकते हैं। यह जरूरी है सरदियाें में ज्यादा से ज्यादा सूरज की रोशनी में समय गुजारने की कोशिश करें। नेचुरल लाइट्स से दिलोदिमाग खुश रहेगा।

हर्बल टी पीने से मन रिलैक्स होता है। कैमोमाइल टी रिलैक्स करती है। कई ऐसी हर्बल चाय होती हैं, जो शरीर का एनर्जी लेवल बढ़ाती हैं।

मौसमी फलों व सब्जियों को अपनी डाइट में शामिल करें। खट्टे फल जैसे स्ट्राबेरी और अन्ननास मूड फ्रेश रखते हैं।

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डायरी मेंटेन करें। इसमें रोज अपने मूड के बारे में लिखें। आपको दिनभर में कैसा अनुभव हुआ, मूड कैसा रहा। इससे आपको खुद ही अपने मूड का पता चलेगा। अपने मूड पर इस तरह नजर रखेंगे, तो जब भी उदास समय शुरू होगा, आप संभलने की कोशिश कर सकते हैं।

कमजोर दिल वाले लोगों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि यह मौसम जानलेवा भी साबित हो सकता है। उनमें अकेलेपन, हताशा, भूख ना लगने, बेचैनी, नींद ना आने व भावशून्यता आदि जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। अपनी हॉबीज से खुद को बिजी रखें।

पूरी चिकित्सा और लाइफस्टाइल में बदलाव से 80 प्रतिशत मरीज ठीक हो जाते हैं। लेकिन समय रहते इलाज ना करयाया जाए, तो व्यक्ति आजीवन इसका मरीज बना रह सकता है। आधे घंटे का मेडिटेशन या 1 घंटे की योग क्लास इस मामले में मददगार साबित हो सकती हैं।

फुल स्पेक्ट्रम लाइट एक तरह का लैंप है, जो सूर्य की मदद से चलता है। यह शरीर में सेरोटोनिन के उत्पादन को बढ़ाता है, जो मूड को बेहतर बनाता है। इससे बहुत अच्छी नींद आती है।

विटामिन डी की कमी से भी सरदियों में अवसाद होता है। दरअसल, विटामिन डी का सबसे अच्छा और प्राकृतिक स्रोत सूर्य की किरणें हैं। सरदियों में धूप कम निकलती है। अगर धूप निकल भी जाए, तो कई बार आलस की वजह से या समय के अभाव में धूप में नहीं बैठ पाते। ऐसे लोग धूप के संपर्क में आने लगें, तो आसानी से अवसाद से बाहर निकल जाते हैं।